________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 9] [343 ही क्या भावितात्मा अनगार भी हिरण्य-मंजूषा हाथ में लेकर (विक्रिया-सामर्थ्य से) स्वयं ऊँचे प्रकाश में उड़ सकता है ? [4 उ.] हाँ, गौतम ! (इसका समाधान भी) पूर्ववत् समझना चाहिए / 5. एवं सुवण्णपेलं, एवं रयणपेलं, वइरपेलं, क्त्थपेलं, आभरणपेलं / [5] इसी प्रकार स्वर्णमंजूषा, रत्नमंजूषा, वज्र (हीरक) मंजूषा, वस्त्रमंजूषा एवं प्राभरणमंजूषा (हाथ में लेकर वैक्रियशक्ति से प्राकाश में उड़ सकता है,) इत्यादि (प्रश्नोत्तर) पूर्ववत् (करना चाहिए / ) 6. एवं वियल किडं, सुबकिडं चम्मकिडं कंबलकिडं / [6] इसी प्रकार विदलकट (बाँस की चटाई), शुम्बकट (वीरणघास की चटाई), चर्मकट (चमड़े से बुनी हुई चटाई या खाट आदि) एवं कम्बलकट (ऊन के कम्बल का बिछौना) (इन सभी रूपों की बिकुर्वणा करके हाथ में लेकर ऊँचे आकाश में उड़ सकता है, इत्यादि प्रश्नोत्तर पूर्ववत् कहना चाहिए। 7. एवं अयभारं तंबभारं तउयभारं सीसगमारं हिरणभारं सुवण्णभारं वइरभारं। [7] इसी प्रकार लोह का भार, तांबे का भार, कलई (कथीर), का भार, शीशे का भार, हिरण्य (चांदी) का भार, सोने का भार और वज्र (हीरे) का भार (लेकर इन सब रूपों की विक्रिया करके ऊँचे आकाश में उड़ सकता है, इत्यादि पूर्ववत् प्रश्नोत्तर कहना चाहिए / ) विवेचन--प्रस्तुत सात सूत्रों (सू. 1 से 7 तक) में भावितात्मा अनगार की वैक्रियशक्ति के सम्बन्ध में विभिन्न प्रश्नोत्तर किये गये हैं कि वह वैक्रियशक्ति से विकुर्वणा करके रज्जुबद्धघटिका अनेक घटिकाएँ तथा हिरण्य, स्वर्ण, रत्न, वज्र, वस्त्र एवं प्राभरण की मंजूषा तथा विदल, शुम्ब, चर्म एवं कम्बल का कट तथा लोहे, ताम्बे, कथीर, शीशे, चांदी, सोने और वज्र का भार स्वयं हाथ में लेकर ऊँचे अाकाश में उड़ सकता है या नहीं? सभी प्रश्नों के विषय में भगवान् का उत्तर एक सदृश स्वीकृतिसूचक है।' कठिन शब्दों के अर्थ केयाघडियं-किनारे पर रस्सी से बंधी हुई घटिका-छोटी घडिया। केयाघडियाकिच्च-हत्थगतेणं--केयाटिका रूप कृत्य (कार्य) को स्वयं हस्तगत करके (हाथ में लेकर)। वेहासं-आकाश में / उप्पएज्जा--उड़ सकता है / हिरण्णपेलं-चांदी की पेटी-मंजूषा / सुवष्णपेलंसोने की पेटी ! रयणपेलं-रत्नों की पेटी। वइरलं-वज्र-हीरों की पेटी। वियलकिडं-विदल अर्थात-बांस को चीर कर उसके टुकड़ों से बनाई हुई कट-चटाई। सुबकिडं-वीरणघास की चटाई। चम्मकिडं - चमडे से बुनी हुई चटाई, खाट आदि / कंबलकिडं- ऊन का बना हुया बिछाने का कम्बल / अयभारं-लोहे का भार / तउयभारं-रांगे या कथीर का भार / सीसगभारं-शीशे का भार / वइरभारं---वज्रभार-हीरे का भार / 1. विवाहपण्णत्तिसुत्तं, (मूलपाठटिप्पण) भा. 2, पृ. 653 2. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 627 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org