________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 7] [41 उ.] गौतम ! वह बारह प्रकार का कहा गया है / यथा बलयमरण इत्यादि, द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक के (सू. 26 के) स्कन्दकाधिकार के अनुसार, यावत् गृध्रपृष्ठमरण तक जानना चाहिए। विवेचन-बालमरण : बारह प्रकार–बालमरण के बारह प्रकार ये हैं—(१ बलय (वलन्)मरण, (2) वार्त्त-मरण, (3) अन्तःशल्य-मरण, (4) तद्भव-मरण, (5) गिरि-पतन, (6) तरुपतन, (7) जल-प्रवेश, (8) ज्वलन-प्रवेश, (6) विष-भक्षण, (10) शस्त्रावपाटन, (11) वैहानसमरण और (12) गृद्धपृष्ठ-मरण / इन बारह भेदों का विस्तृत अर्थ द्वितीय शतक के प्रथम उद्देशक के (सू. 26 में) स्कन्दकप्रकरण में दिया गया है।' पण्डितमरण के भेद और स्वरूप 42. पंडियमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! दुविहे पन्नते, तं जहा-पाओवगमणे य भत्तपच्चक्खाणे य / [42 प्र.] भगवन् ! पण्डितमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [42 उ.] गौतम ! पण्डितमरण दो प्रकार का कहा गया है / यथा--पादपोपगमनमरण और भक्तप्रत्याख्यानमरण / 43. पाओवगमणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! दुविधे पन्नत्ते, तं जहाणीहारिमे य, अणोहारिभे य, नियम अपडिकम्मे / [43 प्र.] भगवन् ! पादपोपगमनमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [43 उ.] गौतम ! वह दो प्रकार का कहा गया है। यथा-(१) निभरिम और (2) अनिभरिम / (दोनों प्रकार का यह पादपोपगमनमरण) नियमतः अप्रतिकर्म (शरीर-संस्काररहित) होता है। 44. भत्तपच्चक्खाणे णं भंते ! कतिविधे पन्नते ? एवं तं चेव, नवरं नियम सपडिकम्मे / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / // तेरसमे सए : सत्तमो उद्देसओ समत्तो॥ 13.7 // [44 प्र.] भगवन् ! भक्तप्रत्याख्यानमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [44 उ.] (गौतम ! ) वह भी इसी प्रकार (पूर्ववत् दो प्रकार का) है, विशेषता यह है कि दोनों प्रकार का यह मरण नियमतः सप्रतिकर्म (शरीरसंस्कारसहित) होता है। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतमस्वामी विचरते हैं। 1. व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र (श्री पागमप्रकाशनसमिति ब्यावर) खण्ड 1, पृ. 180 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org