________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 7] अवधिमरण के भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप 31. मोहिमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पन्नत्ते, तं जहा-दव्योहिमरणे खेत्तोहिमरणे जाव भावोहिमरणे / [31 प्र.] भगवन् ! अवधिमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [31 उ.] गौतम ! अवधिमरण पांच प्रकार का कहा गया है / यथा--द्रव्यावधिमरण, क्षेत्रावधिमरण (कालावधिमरण, भवावधिमरण और) यावत् भावावधिमरण / 32. दम्वोहिमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते? गोयमा ! चउन्विहे पन्नत्ते, तं जहा–नेरइयदवोहिमरणे जाव देवदव्वोहिमरणे। [32 प्र.] भगवन् ! द्रव्यावधिमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [32 उ.] गौतम ! द्रव्यावधिमरण चार प्रकार का कहा गया है / यथा-नैरयिक-द्रव्यावधिमरण, यावत् (तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यावधिमरण, मनुष्य-द्रव्यावधिमरण), देवद्रव्यावधिमरण / 33. से केणढणं भंते ! एवं वुच्चइ 'नेरइयदम्वोहिमरणे, नेरइयदबोहिमरणे ? गोयमा ! जंणं नेरइया नेरइयदव्वे वट्टमाणा जाई दवाई संपयं मरंति, ते णं नेर इया ताई दम्याई अणागते काले पुणो वि मरिस्संति / से तेणढणं गोयमा ! जाव दवोहिमरणे। [33 प्र. भगवन ! नैरयिक-द्रव्यावधिमरण नैयिक-द्रव्यावधिमरण क्यों कहलाता है ? [33 उ.] गौतम ! नैरयिकद्रव्य (नारक जीव) के रूप में रहे हए नैरयिक जीव जिन द्रव्यों को इस (वर्तमान) समय में छोड़ते (भोग कर मरते) हैं, फिर वे ही जीव पुन: नरयिक हो कर उन्हीं द्रव्यों को ग्रहण कर भविष्य में फिर छोड़ेंगे (मरेंगे); इस कारण हे गौतम ! नरयिकद्रव्यावधिभरण नैरयिक-द्रव्यावधिमरण कहलाता है। 34. एवं तिरिक्खजोणिय० मणुस्स० देवोहिमरणे वि। [34] इसी प्रकार तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यावधिमरण, मनुष्य-द्रव्यावधिमरण और देव-द्रव्यावधिमरण भी कहना चाहिए। 35. एवं एएणं गमएणं खेत्तोहिमरणे वि, कालोहिमरणे वि, भवो हिमरणे वि, भावोहिमरणे दि / [35] इसी प्रकार के आलापक क्षेत्रावधिमरण, कालावधिमरण, भवावधिमरण और भावावधिमरण के विषय में भी कहने चाहिए। विवेचन अवधिमरण के भेद-प्रभेद प्रस्तुत पांच सूत्रों (सू. 31 से 35 तक) में अवधिमरण के द्रव्य, क्षेत्र, काल, भव और भाव की अपेक्षा से पांच भेद किये हैं, फिर उनके भी प्रत्येक के नैरयिक, तिर्यञ्चयोनिक, मनुष्य और देव, यों गति की अपेक्षा से चार-चार भेद किये हैं। आत्यन्तिकमरण के भेद-प्रभेद और उनका स्वरूप 36. आतियंतियमरणे णं भंते ! 0 पुच्छा। गोयमा! पंचविहे पन्नते, तं जहा दव्वातियंतियमरणे, खेतातियंतियमरणे, जाव भावातियंतियमरणे। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org