________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 7] ' [335 (1) द्रव्यावीचिकमरण, (2) क्षेत्रावीचिकमरण, (3) कालावी चिकमरण, (4) भवावीचिकमरण और (5) भावावीचिकमरण / 25. दवाबोचियमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नते ? गोयमा ! चउविहे पन्नत्ते, तं जहा---नेरइयदव्यावीचियमरणे तिरिक्खजोणियदम्बावोचियमरणे मणुस्सदवावीचियमरणे देवदवावीचियमरणे / [25 प्र.] भगवन् ! द्रव्यावीचिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? 125 उ.] गौतम ! वह चार प्रकार का कहा गया है यथा--(१) नैयिक-द्रव्यावीचिकमरण, (2) तिर्यगयोनिक-द्रव्यावीचिकमरण, (3) मनुष्य-द्रव्यावीचिकमरण और (4) देव-द्रव्यावीचिकमरण / 26. से केपट्टणं भंते ! एवं कुच्चइ 'नेरइयदव्यावीचियमरणे, नेरइयदव्वाबीचियमरणे ? गोयमा ! जंणं नेरइया नेरइयदवे वट्टमाणा जाई दवाई नेरइयाउयत्ताए गहियाई बद्धाई पुट्ठाई कडाइं पवियाई निविट्ठाई अभिनिविट्टाई अभिसमन्नागयाइं भवंति ताई दवाई आवीची अणुसमयं निरंतरं मरंतीति कट्ट, से तेण?णं गोयमा ! एवं वुच्चइ 'रइयदव्वावोचियमरणे, नेरइयदबावोचियमरणे। [26 प्र.] भगवन् ! नैरयिक-द्रव्यावी चिकमरण को नैयिक-द्रव्यावीचिकमरण किस लिए कहते हैं ? _ [26 उ.] गौतम ! क्योंकि नारकद्रव्य (नारक जीव) रूप से वर्तमान नैरयिक ने जिन द्रव्यों को नारकायुष्य रूप में स्पर्श रूप से ग्रहण किया है, बन्धन रूप से बांधा है, प्रदेशरूप से प्रक्षिप्त कर पुष्ट किया है, अनुभाग रूप से विशिष्ट रसयुक्त किया है, स्थिति-सम्पादनरूप से स्थापित किया है, जीवप्रदेशों में निविष्ट किया है, अभिनिविष्ट (अत्यन्त गाढ रूप से निविष्ट), किया है तथा जो द्रव्य अभिसमन्वागत (उदयावलिका में आ गए) हैं, उन द्रव्यों को (भोग कर) वे प्रति समय निरन्तर छोड़ते (मरते) रहते हैं / इस कारण से हे गौतम ! नैरयिकों के द्रव्यावीचिमरण को नैयिकद्रव्यावीचिकमरण कहते हैं / 27. एवं जाव देवदवावीचियपरणे / [27] इसी प्रकार (तिर्यञ्चयोनिक-द्रव्यावी चिकमरण, मनुष्य-द्रव्यावीचिकमरण) यावत् देव-द्रव्यावीचिकमरण के विषय में कहना चाहिए। 28. खेसावीचियमरणे णं भंते ! कतिविधे पन्नत्ते ? गोयमा ! चउविहे पन्नते, तं जहा–नेरइयखेत्तावीचियमरणे जाव देवखेत्तावीचियमरणे। [28 प्र.) भगवन् ! क्षेत्रावोचिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [28 उ. गौतम ! क्षेत्रावीचिकारण चार प्रकार का कहा गया है / यथा-नैरयिकक्षेत्रावीचिकमरण (तिर्यञ्चयोनिक-क्षेत्रावीचिकमरण, मनुष्य-क्षेत्रावीचिकमरण ) यावत् देवक्षेत्रावी चिकमरण। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org