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________________ 334] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र मुनिराज के औदारिकशरीर के साथ मिथता होने से प्राहारकमिश्रकाय होता है। कार्मणकाय --- विग्रहमति में अथवा केलिसमुद्घात के समय कार्मण कायशरीर होता है।' मरण के पांच प्रकार 23. कतिविधे गं भंते ! मरणे पन्नत्ते ? गोयमा ! पंचविधे मरणे पन्नत्ते, तं जहा—आवोचियमरणे ओहिमरणे आतियंतियमरणे बालमरणे पंडियमरणे। [23 प्र. भगवन् ! मरण कितने प्रकार का कहा गया है ? 23 उ.] गौतम ! मरण पांच प्रकार का कहा गया है / वह इस प्रकार है--(१) आवीचिकमरण, (2) अवधिमरण, (3) प्रात्यन्तिकमरण, (4) बालमरण और (5) पण्डितमरण / विवेचन–पञ्चविध मरण के लक्षण -मरण की परिभाषा-अायुष्य पूर्ण होने पर आत्मा का शरीर से वियुक्त होना (छूटना) अथवा शरीर से प्राणों का निकल जाना तथा बन्धे हुए आयुष्यकर्म के दलिकों का क्षय होना 'मरण' कहलाता है / वह मरण पांच प्रकार का है। उनके लक्षण क्रमशः इस प्रकार हैं--(१) आवोचिकमरण -वोचि (तरंग) के समान प्रतिसमय भोगे हुए अत्यान्य आयुष्यकर्मदलिकों के उदय के साथ-साथ क्षय रूप अवस्था प्रावीचिकमरण है; अथवा जिस मरण में वीचि-विच्छेद विद्यमान रहे अर्थात् --विच्छेद न हो-पायुष्यकर्म की परम्परा चालू रहे, उसे प्रावीचिमरण कहा जा सकता है। (2) अवधिमरण-अवधि (मर्यादा)-सहित मरण / नरकादिभवों के कारणभूत वर्तमान प्रायुष्यकर्मदलिकों को भोग कर (एक बार) मर जाता है, यदि पुन: उन्हीं अायुष्यकर्मदलिकों को भोग कर मृत्यु प्राप्त करे, तब अवधिमरण कहलाता है / उन द्रव्यों की अपेक्षा से पूनम्रहण की अवधि तक जोव मृत रहता है, इस कारण वह अवधिमरण कहलाता है। परिणामों की विचित्रता के कारण कर्मदलिकों को ग्रहण करके छोड देने के बाद पुन: उनका ग्रहण करना सम्भव होता है। (3) प्रात्यन्तिकमरण-अत्यन्तरूप से मरण प्रात्यन्तिकमरण है। अर्थात्---नरकादि आयुष्यकर्म के रूप में जिन कर्मलिकों को एक बार भोग कर जीव मर जाता है, उन्हें फिर कभी नहीं भोगकर मरना। उन कर्मदलिकों को अपेक्षा से जीव का मरण प्रात्यन्तिकमरण कहलाता है / (4) बालमरण-अविरत (व्रतरहित) प्राणियों का मरण / (5) पण्डितमरण-सर्वविरत साधुवर्ग का मरण / प्रावीचिमरण के भेद-प्रभेद और स्वरूप 24. आवोचियमरणे णं भंते ! कतिविधे पण्णत्ते ? गोयमा ! पंचविहे पन्नते, तं जहा -दव्वाबोचियमरणे खेत्तावीचियमरणे कालावीचियमरणे भवावीचियमरणे भावावीचियमरणे। [24 प्र.] भगवन् ! प्रावीचिकमरण कितने प्रकार का कहा गया है ? [24 उ. गौतम ! आवी चिकमरण पांच प्रकार का कहा गया है। वह इस प्रकार 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 624 2. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 625 (ख) भगवती (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2261 . Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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