________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 6] [315 [10] उस वोतिभय नगर के बाहर उत्तर-पूर्व दिशाभाग (ईशानकोण) में मृगवन नामक उद्यान था / वह सभी ऋतुनों के पुष्प आदि से समृद्ध था, इत्यादि वर्णन (करना चाहिए / ) 11. तत्थ णं वीतीभए नगरे उदायणे नामं राया होत्था, महया० वण्णओ / * [11] उस वीतिभय नगर में उदायन नामक राजा था / वह महान् हिमवान (हिमालय) पर्वत के समान था, (इत्यादि सब) वर्णन (करना चाहिए।) 12-13. तस्स णं उदायणस्स रण्णो पभावती नाम देवी होत्था / सुकुमाल० वष्णओ, जाव विहरति / [12.13] उस उदायन राजा को प्रभावती नाम की देवी (पटरानी) थी। वह सुकुमाल (हाथ-पैरों वाली) थी, इत्यादि वर्णन यावत्-विचरण करती थो, (यहाँ तक) करना चाहिए। 14. तस्स णं उदायणस्स रण्णो पुत्ते पभावतीए देवीए प्रत्तए अभीयो नाम कुमारे होत्था / सुकुमाल० जहा सिवभद्दे (स० 11 उ० 9 सु० 5) जाव पच्चुवेक्खमाणे विहरइ। [14] उस उदायन राजा का पुत्र और प्रभावती देवी का पात्मज अभीचि नामक कुमार था / वह सुकुमाल था / उसका शेष वर्णन (शतक 11 उ. 6 सू. 5 में उक्त) शिवभद्र के समान यावत् वह राज्य का निरीक्षण करता हुआ रहता था, (यहाँ तक) जानना चाहिए। 15. तस्स णं उदायणस्स रण्णो नियए भाइणेज्जे केसी नाम कुमारे होत्था, सुकुमाल जाव : सुरूवे। [15] उस उदायन राजा का अपना (सगा) भान जा केशी नामक कुमार था। वह भी सुकुमाल यावत् सुरूप था। 16. से णं उदायणे राया सिंधुसोवीरप्पामोक्खाणं सोलसहं जणवयाणं, बोतोभयप्पामोक्खाणं तिण्हं तेसहोणं नगरागरसयाणं, महसेणप्पामोवखाणं दसव्हं राईणं बद्धमउडाणं विदिण्णहत्त-चामरवालवीयणाणं, अन्नेसि च बहूणं राईसर-तलवर जाव सत्थवाहप्पभितीणं आहेबच्चं पोरेवच्चं जाव कारेमाणे पालेमाणे समणोवासए अभिगयजीवाजीवे जाव विहरति / [16] वह उदायन राजा सिन्धु सौवीर आदि सोलह जनपदों (देशों) का, वीतिभय-प्रमुख तीन सौ त्रेमठ नगरों और आकरों का स्वामी था। जिन्हें छत्र, चामर और बाल-व्यजन (पंखे) दिये मए थे, ऐसे महासेन-प्रमुख दस मुकुटबद्ध राजा तथा अन्य बहुत-से राजा, ऐश्वर्य सम्पन्न व्यक्ति, (अथवा युवराज), तलवर (कोतवाल), यावत्-सार्थवाह-प्रभूति जनों पर आधिपत्य करता हुमा तथा राज्य का पालन करता हा यावत विचरता था। वह जीव-ग्रजीव ग्रादितत्त्वों का ज्ञाता यावत श्रमणोपासक था। विवेचन ---प्रस्तुत 8 सूत्रों (सू. 6, से 16) में सिन्धु-सौवीर जनपद, उनको राजधानी वीतिभयनगर, उसके शासक उदायन नृप, उसके राजपरिवार तथा उसके अधीनस्थ राजाओं आदि का संक्षिप्त परिचय दिया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org