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________________ 314 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पत्तियं-क्रीड़ा (खेल-कूद) और रति (भोगविलास) के लिए। आसयंति-आश्रय लेते हैं, थोड़ा विश्राम लेते हैं अथवा थोड़ा सोते हैं लेटते हैं / सयंति-विशेष आश्रय लेते हैं, अधिक विश्राम लेते हैं, या अधिक सोते हैं, 1 [चिट्ठति---ठहरते या खड़े रहते हैं / निसीयंति—बैठते हैं। तुयटति-- करवट बदलते हैं / हसंति-हंसते हैं / रमंति-पासों से खेलते हैं / कोलंति कामक्रीड़ा करते हैं। किड्डंति --क्रीड़ा करते हैं। मोहयंति--मोहित करते हैं अर्थात् विमुग्ध होकर प्रणय करते हैं।] किड्डारतिपत्तियं--क्रीड़ा में रति----प्रानन्द लेने के लिए, अथवा क्रीड़ा और रति के निमित्त / ' उदायन नरेश वृत्तान्त भगवान् का राजगृहनगर से विहार, चम्पापुरी में पदार्पण 7. तए णं समणे भगवं महावीरे अन्नदा कदायि रायगिहाम्रो नगरानो गुणसिलामो जाव विहरति / ___ [7] तदनन्तर श्रमण भगवन् महावीर किसी अन्य (एक) दिन राजगृह नगर के गुणशील नामक चैत्य से यावत् (अन्यत्र) विहार कर देते हैं / 8. तेणं कालेणं तेणं समएणं चंपा नाम नयरी होत्था। वण्णश्रो।* पुण्णभद्दे चेतिए / वणओ / तए णं समजे भगवं महावीरे अन्नया कदायि पुवाणुपुन्धि चरमाणे जाव विहरमाणे जेणेव चंपानगरी, जेणेव पुण्णभद्दे चेतिए तेणेव उवागच्छति, उवागच्छित्ता जाव विहर।। (4) उस काल, उस समय में चम्पा नाम की नगरी थी। (उसका) वर्णन प्रौपपातिक सूत्र के नगरीवर्णन के अनुसार जानना चाहिए / (उसमें) पूर्णभद्र नाम का चैत्य था। (उसका) वर्णन (करना चाहिए / ) किसी दिन श्रमण भगवान् महावीर पूर्वानुपूर्वी से (क्रमशः) विचरण करते हुए यावत् विहार करते हुए जहाँ चम्पा नगरी थी और जहाँ (उसका) पूर्णभद्र नामक चैत्य था, वहाँ पधारे यावत् विचरण करने लगे। - विवेचन प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 7-8) में भगवान महावीर स्वामी के राजगृह नगर से विहार का तथा चम्पा नगरी में पदार्पण का वर्णन किया है / चम्पा नगरी में उनका पदार्पण क्यों हुअा ? उसका रहस्य अागे के सूत्रों से प्रकट होगा। उदायन नप, राजपरिवार, वीतिभयनगर आदि का परिचय 9. तेणं कालेणं तेणं समएणं सिंधुसोवोरेसु जणवएसु बीतीभए नाम नगरे होत्था / वण्णओ। [6] उस काल, उस समय सिन्धु-सौवीर जनपदों में बीतिभय नामक नगर था / (उसका) वर्णन (करना चाहिए।) 10. तस्स णं वीतीभयस्स नगरस्स बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसिभाए, एत्थ णं मियवणे नामं उज्जाणे होत्था / सव्वोउय० वण्णनो / * 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 617-618 (ख) भगवतो. हिन्दीविवेचन, भा. 5, पृ. 2229 * 'वण्णायो शब्द से सर्वत्र प्रौपपातिक सूत्रानुसार वर्णन समझना। -भगवती. अ. वृ., पत्र 618 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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