________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 4] [301 स्तिकाय के असंख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय का कदाचित् एक प्रदेश यावत् कदाचित सख्यात प्रदेश और कदाचित प्रसंख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं / जिस प्रकार पुद्गलास्तिकाय के विषय में कहा है, उसी प्रकार अनन्त प्रदेशों के विषय में भी कहना चाहिए / अर्थात्-जहाँ पुद्गलास्तिकाय के अनन्त प्रदेश अवगाह होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय का कदाचित् एक प्रदेश यावत् संख्यात प्रदेश और असंख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं / 60. [1] जत्थ णं भंते ! एगे प्रद्धासमये प्रोगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽस्थि० ? एक्को / [60-1 प्र.] भगवन् ! जहां एक अद्धासमय अवगाह होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? {60-1 उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ होता है ? [2] केवतिया अहम्मऽथि० ? एक्को / [60-2 प्र.] (भगवन् ! वहाँ) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? {60-2 उ.] (वहाँ उसका) एक प्रदेश अवमाढ होता है। [3] केवतिया आगासऽस्थि० ? एक्को / [60-3 प्र.। (भगवन् ! वहाँ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [60-3 उ.] (गौतम ! वहाँ अाकाशास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ होता है / [4] केवइया जीवऽथि० ? अणंता। [60-4 प्र.] (भगवन् ! वहाँ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाळ होते हैं ? |60-4 उ.] (गौतम ! वहाँ जीवास्तिकाय के) अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं। [5] एवं जाव अद्धासमया। [60-5 प्र.] इसी प्रकार यावत् श्रद्धासमय तक कहना चाहिए / 61. [1] जत्थ गं भंते ! धम्मत्यिकाये प्रोगाढे तत्थ केवतिया धम्मस्थिकायपएसा ओगाढा? नत्थि एक्को वि। [61-1 प्र. भगवन् ! जहाँ एक धर्मास्तिकाय-द्रव्य अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [61-1 उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) एक भी प्रदेश अवगाढ नहीं होता। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org