________________ 302] [ब्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] केवतिया अहम्मऽस्थिकाय ? असंखेज्जा। [61-2 प्र.] (भगवन् ! वहाँ) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [61-2 उ.] (गौतम ! वहाँ) अधर्मास्तिकाय के असंख्येय प्रदेश अवगाढ होते हैं / [3] केवतिया अागास? असंखेज्जा। |61-3 प्र.] (वहाँ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [61-3 उ.] (वहाँ उसके) असंख्येय प्रदेश अवगाढ होते हैं। [4] केवतिया जीवस्थिकाय ? अणता। [61-4 प्र.] (वहाँ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [61-4 उ.] (वहाँ उसके) अनन्त प्रदेश (अवगाढ होते हैं / ) [5] एवं जाव अद्धा समया। [61-5] इसी प्रकार यावत् अद्धासमय (तक कहना चाहिए।) 62. [1] जत्थ णं भंते ! अहम्मऽथिकाये ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽस्थिकाय ? असंखेज्जा। [62-1 प्र.] भगवन् ! जहाँ एक अधर्मास्तिकाय-द्रव्य अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [62-1 उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय के) असंख्येय प्रदेश प्रवगाढ होते हैं / [2] केवतिया अहम्मस्थि० ? नत्थि एक्को वि। [62.2 प्र.] (वहाँ) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [62-2 उ.] (अधर्मास्तिकाय का) एक भी प्रदेश (वहाँ) अवगाढ नहीं होता। [3] सेसं जहा धम्मऽस्थिकायस्स / / [62-3] शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के समान करना चाहिए / 63. एवं सब्वे सटाणे नस्थि एक्को वि भाणियन्वं / परदाणे आदिल्लगा तिन्नि असंखेज्जा भाणियन्वा, पच्छिल्लगा तिन्नि अणंता भाणियव्या जाब अद्धासमओ त्ति-जाव केवतिया अद्धासमया ओगाढा? नत्थि एक्को वि। [63] इस प्रकार धर्मास्तिकायादि सब द्रव्यों के स्वस्थान' में एक भी प्रदेश नहीं होता; किन्तु परस्थान में प्रथम के तीन द्रव्यों (धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय और आकाशास्तिकाय) के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org