________________ [थ्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [2] एवं अहम्मऽथिकायस्स वि। [57-2] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेश के विषय में कहना चाहिए / [3] एवं पागासऽस्थिकायस्स वि / [57-3] इसी प्रकार ग्राकाशास्तिकाय के प्रदेश के विषय में जानना चाहिए। [4] सेसं जहा धम्मऽथिकायस्स / [57-4] शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के समान समझना चाहिए / 58. [1] जत्थ णं भंते ! तिन्नि पोगलत्थि० तत्थ केवतिया धम्मऽस्थिकाय ? सिय एक्को, सिय दोन्नि, सिय तिन्नि / [58-1 प्र.] भगवन् ! जहाँ पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [58-1 उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) कदाचित् एक, कदाचित् दो या कदाचित् तीन प्रदेश अवगाढ होते हैं। [2] एवं अहम्मऽस्थिकायस्स वि। [58-2] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के विषय में भी कहना चाहिए / [3] एवं आगासऽस्थिकायस्स वि / [58-3] प्राकाशास्तिकाय के विषय में भी इसी प्रकार कहना चाहिए / [4] सेसं जहेब दोण्हं। [58-4] शेष (जीवास्तिकाय, पुद्गलास्तिकाय और श्रद्धासमय इन) तीनों के विषय के, जिस प्रकार दो पुद्गलप्रदेशों के विषय में कहा था उसी प्रकार तीन पुद्गलप्रदेशों के विषय में भी कहना चाहिए। 59. एवं एक्कक्को वढियब्यो पएसो आदिल्लएहि तीहि अस्थिकाएहि / सेसं जहेव दोण्हं जाव दसण्हं सिय एक्को, सिय दोन्नि, सिय तिन्नि जाब सिय दस / संखेज्जाणं सिय एक्को, सिय दोन्नि, जाव सिय दस, सिय संखेज्जा / असंखेज्जाणं सिय एक्को, जाव सिय संखेज्जा, सिय असंखेज्जा / जहा प्रसंखेज्जा एवं अर्णता वि। [56] आदि के तीन अस्तिकायों के साथ एक-एक प्रदेश बढ़ाना चाहिए। शेष के विषय में जिस प्रकार दो पुद्गल प्रदेशों के विषय में कहा था, उसी प्रकार यावत् दस प्रदेशों तक कहना चाहिए। अर्थात् जहाँ पुद्गलास्तिकाय के दस प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय का कदाचित् एक, दो, तीन, यावत् कदाचित् दस प्रदेश अवगाढ होते हैं। जहाँ पुद्गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय का कदाचित् एक, दो, तीन, यावत् कदाचित् दस प्रदेश यावत् कदाचित् संख्यात प्रदेश अवगाढ होते हैं / जहाँ पुद्गला Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org