________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 4] [299 [5] एवं जाव अद्धासमया। [54-5] इसी प्रकार यावत् अद्धासमय तक कहना चाहिए / 55. [1] जत्थ णं भंते ! एगे जीवऽस्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽस्थि० ? एक्को / [55-1 प्र.] भगवन् ! जहाँ जीवास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [55-1 उ.] (गौतम ! वहाँ उसका) एक प्रदेश अवगाढ होता है / [2] एवं अहम्मऽस्थिकाय० / [55.2] इसी प्रकार (वहाँ) अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों के विषय में जानना चाहिए / [3] एवं आगासऽस्थिकायपएसा वि। [55-3] आकाशास्तिकाय के प्रदेशों के विषय में भी इसी प्रकार समझना चाहिए / [4] केवतिया जीवत्यिक ? अणंता। [55-4 प्र.] (भगवन् ! वहाँ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश प्रवगाढ होते हैं ? [55-4 उ.] (गौतम ! वहाँ उसके) अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं। [5] सेसं जहा धम्माधिकायस्स। [55-5] शेष सभी कथन धर्मास्तिकाय के समान समझना चाहिए। 56. जत्थ णं भंते ! एगे पोग्गलऽस्थिकायपदेसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽथिकाय ? एवं जहा जीवऽत्थिकायपएसे तहेव निरवसेसं / [56 प्र.] भगवन् ! जहाँ पुद्गलास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? 56 उ.] (गौतम ! ) जिस प्रकार जीवास्तिकाय के प्रदेशों के विषय में कहा, उसी प्रकार समस्त कथन करना चाहिए / 57. [1] जत्थ णं भंते ! दो पोग्गलऽस्थिकायपएसा श्रोगाढा तत्थ केवतिया धम्मऽस्थिकाय ? सिय एक्को, सिय दोणि / [57-1 प्र.] भगवन् ! जहाँ पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश अवगाढ होते हैं, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अगावढ होते हैं ? . [57-1 उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) कदाचित् एक या कदाचित् दो प्रदेश अवगाढ होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org