________________ 298] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [52-6 प्र.] श्रद्धासमय कदाचित् अवगाढ होते हैं. और कदाचित् नहीं होते। यदि अवगाढ होते हैं तो अनन्त अद्धासमय अवगाढ होते हैं / 53. [1] जत्थ णं भंते ! एगे अधम्मऽस्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मस्थि० ? एक्को / [53-1 प्र.] भगवन् ! जहाँ अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [53-1 उ.] (गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का) एक प्रदेश अवगाढ होता है / [2] केवतिया अहम्मऽथि ? नत्यि एक्को वि . [53-2 प्र.] (वहाँ) अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [53-2 उ.] (वहाँ) उसका एक प्रदेश भी अवगाढ नहीं होता। [3] सेसं जहा धम्मऽथिकायस्स। [53-3] शेष (कथन) धर्मास्तिकाय के समान (समझना चाहिए / ) 54. [1] जत्थ णं भंते ! एगे श्रागासऽस्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽस्थिकाय? सिय ओगाढा, सिय नो प्रोगाढा / जति ओगाढा एक्को। [54-1 प्र.] भगवन् ! जहाँ प्राकाशास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ होता है, वहाँ धर्मास्तिकाय के किलने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [54-1 उ.] गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय के प्रदेश कदाचित् प्रवगाढ होते हैं और कदाचित अवगाढ नहीं होते। यदि अवगाढ होते हैं तो एक प्रदेश अवगाढ होता है। [2] एवं अहम्मस्थिकायपएसा वि। [54-2] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों के विषय में भी जानना चाहिए / [3] केवतिया आगासस्थिकाय? नत्थेक्को वि। [54-3 प्र.] (भगवन् ! वहाँ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश प्रवगाढ होते हैं ? {54-3 उ.] (वहाँ) एक प्रदेश भी (उसका) अवगाढ नहीं होता। [4] केवतिया जीवऽस्थि? सिय ओगाढा, सिय नो प्रोगाढा / जति प्रोगाढा अणंता। [54-4 प्र.] (भगवन् ! वहाँ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [54-4 उ.] (गौतम ! बे) कदाचित् अवगाढ होते हैं एवं कदाचित् अवगाढ नहीं होते / यदि अवगाढ होते हैं तो अनन्त प्रदेश अवगाढ होते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org