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________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 4] [297 हो गया और अनागत समय अभी उत्पन्न ही नहीं हुआ। अतएव अतीत और अनागत के समय असत्स्वरूप होने से उनके साथ वर्तमान समय को स्पर्शना नहीं हो सकती।' धर्मास्तिकाय की तरह अधर्मास्तिकाय के छह, आकाशास्तिकाय के छह, जीवास्तिकाय के छह और अद्धासमय के छह सूत्र कहने चाहिए। पंचास्तिकाय-प्रदेश प्रद्धासमयों का परस्पर विस्तृत प्रदेशावगाहनानिरूपण : नौवाँ अवगाहनाद्वार 52. [1] जत्थ गं भंते ! एगे धम्मऽस्थिकायपएसे ओगाढे तत्थ केवतिया धम्मऽस्थिकायपएसा प्रोगाढा ? नत्थेक्को वि। [52-1 प्र.] भगवन ! जहाँ धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश अवगाढ (अवगाहन करके स्थित) है, वहाँ धर्मास्तिकाय के दूसरे कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? [52-1 उ.] गौतम ! वहाँ धर्मास्तिकाय का दूसरा एक भी प्रदेश अवगाढ नहीं है। [2] केवतिया अधम्माथिकायपएसा ओगाढा ? / एक्को। [52-2 प्र. भगवन् ! वहाँ अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ हैं ? [52-2 उ.] (गौतम !) वहाँ एक प्रदेश अवगाढ होता है / [3] केवतिया भागासऽस्थिकाय ? एक्को / [52-3 प्र.] (भगवन् ! वहाँ) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेश प्रवगाढ होते हैं ? [52-3 उ.] (उसका) एक प्रदेश अवगाढ होता है / [4] केवतिया जीवऽस्थि० ? अर्णता। [52-4 प्र. (भगवन् ! ) जीवास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [52-4 उ.] (गौतम ! उसके) अनन्त प्रदेश प्रवगाढ होते हैं। [5] केवतिया पोग्मलऽस्थि० ? अणता। [52.5 प्र. (भगवन् ! वहाँ) पुद्गलास्तिकाय के कितने प्रदेश अवगाढ होते हैं ? [52-5 उ.} (मौतम ! उसके) अनन्त प्रदेश प्रवगाढ होते हैं / [6] केवतिया श्रद्धा समया० ? सिय प्रोगाढा, सिय नो ओगाढा / जति ओगाढा अणंता। 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 613 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 5 पृ. 2209 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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