________________ [व्यास्याप्रज्ञप्तिसूत्र 41. अट्ट पो०? जह अट्ठारसहि, उक्कोसेणं बायालीसाए। [41 प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के आठ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [41 उ.] (गौतम ! वे) जघन्य पद में अठारह और उत्कृष्ट पद में बयालीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं / ) 42. नव पो०? जह० वीसाए, उक्को० सीयालीसाए। [42 प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के नौ प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? घन्य पद में बीस और उत्कृष्ट पद में छियालीस प्रदेशों से होते हैं / ) 43. दस०? . जह० बावीसाए, उक्को० बावण्णाए / लास्तिकाय के दस प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं ? [43 उ.] (गौतम ! वे) जघन्य पद में बाईस और उत्कृष्ट पद में वावन प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं ?) 44. प्रागासऽस्थिकायस्स सम्वत्थ उक्कोसगं भाणियध्वं / [44] अाकाशास्तिकाय के लिए सर्वत्र उत्कृष्ट पद ही कहना चाहिए / 45. [1] संखेज्जा भंते ! पोग्गल थिकायपएसा केवतिएहि धम्माथिकायपएसेहि पुट्ठा ? जहन्नपदे तेणेव संखेज्जएणं दुगुणणं दुरूवाहिएणं, उक्कोसपए तेणेव संखेज्जएणं पंचगुणणं दुरूवाहिएणं। पूद गलास्तिकाय के संख्यात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [45-1 उ.] गौतम ! जघन्य पद में उन्हों संख्यात प्रदेशों को दुगुने करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़ें और उत्कृष्ट पद में उन्हीं संख्यात प्रदेशों को पांच गुने करके उनमें दो रूप और अधिक जोड़ें, उतने प्रदेशों से वे स्पृष्ट होते हैं। [2] केवतिहि अहम्मऽस्थिकाएहि ? एवं चेव। [45-2 प्र. (भगवन् ! ) वे अधर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [45-2 उ.) (गौतम !) पूर्ववत् (धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org