________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 4] [269 [4] सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स / [35-4] शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए। 36. एवं एएणं गमेणं भाणियब्वा जाव दस, नवरं जहन्नपदे दोनि पविखवियम्वा, उक्कोसपए पंच। [36] इसी आलापक के समान यावत् दश प्रदेशों तक इसी प्रकार कहना चाहिए। विशेषता यह है कि जघन्य पद में दो और उत्कृष्ट पद में पांच का प्रक्षेप करना चाहिए / 37. चत्तारि पोग्गलऽस्थिकाय ? जहन्नपदे दहि, उक्को० बावीसाए / [37 प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के चार प्रदेश (धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? ) [37 उ.] (गौतम ! वे) जघन्य पद में दस प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बाईस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) 38. पंच पोग्गल? जह• बारसहि, उक्कोस० सत्तावीसाए / [38 प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के पांच प्रदेश (धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? ) _ [38 उ.] (गौतम ! वे) जघन्य पद में बारह प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सत्ताईस प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। 36. छ पोग्गल.? जह० चोद्दसहि, उक्को० बत्तीसाए। [36 प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के छह प्रदेश (धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ?) 36 उ.] (गौतम ! वे) जघन्यपद में चौदह और उत्कृष्ट पद में बत्तीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) 40. सत्त पो० ? जहन्नेणं सोलसहि, उक्को० सत्ततीसाए। [40 प्र.] (भगवन् ! ) पुद्गलास्तिकाय के सात प्रदेश धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं ? ) [40 उ.] (गौतम ! वे) जघन्य पद में सोलह और उत्कृष्ट पद में सैंतीस प्रदेशों से (स्पृष्ट होते हैं।) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org