________________ 288] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जीवास्तिकाय के प्रदेश को स्पर्शना के समान पुदगलास्तिकाय के प्रदेश की स्पर्शना भी जाननी चाहिए। 34. [1] दो भंते ! पोग्गलऽस्थिकायप्पदेसा केवतिएहिं धम्मस्थिकायपएसेहि पुट्ठा ? जहन्नपए छह, उक्कोसपदे बारसहि / [34-1 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट हैं ? [34-1 उ.] गौतम ! वे जघन्य पद में धर्मास्तिकाय के छह प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में बारह प्रदेशों से स्पृष्ट हैं। [2] एवं प्रहम्माथिकायप्पएसेहि वि। [34-2] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे (पुद्गलास्तिकाय के दो प्रदेश) स्पृष्ट होते हैं / [3] केवतिएहि मागास स्थिकाय? बारसहि। [34-3 प्र.] भगवन् ! वे आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [34-3 उ.] गौतम ! वे आकाशास्तिकाय के 12 प्रदेशों से स्पृष्ट हैं / [4] सेसं जहा धम्मस्थिकायस्स / [34-4] शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के समान जानना चाहिए। 35. [1] तिन्नि भंते ! पोग्गलऽस्थिकायपदेसा केवतिएहि धम्मत्यिक ? जहन्नपदे अहि, उक्कोसपदे सत्तरसहि / [35-1 प्र.] भगवन् ! पुद्गलास्तिकाय के तीन प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं ? [35-1 उ. ] गौतम ! वे (तीन प्रदेश) जघन्य पद में (धर्मास्तिकाय के) पाठ प्रदेशों और उत्कृष्ट पद में 17 प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। [2] एवं अहम्मस्थिकायपदेसेहि वि / [35-2] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी वे (तीन प्रदेश) स्पृष्ट होते हैं / [3] केवइएहिं पागासस्थि० ? सत्तरसहि / [35-3 प्र.] भगवन् ! अाकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (वे स्पृष्ट होते हैं ?) [35-3 उ.] गौतम ! वे सत्तरह प्रदेशों से स्पृष्ट होते हैं। 1. (क) वही, पृ. 2206 (ख) भगबती. अ. वत्ति, पत्र 611 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org