________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 4] [287 प्राकाशास्तिकाय के एक प्रदेश की धर्मास्तिकायादि से स्पर्शना–प्राकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, लोक की अपेक्षा धर्मास्तिकाय के प्रदेश से स्पष्ट होता है और अलोक की अपेक्षा स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो जघन्य पद में लोकान्तवर्ती धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से, शेष धर्मास्तिकाय प्रदेशों से निर्गत अग्नभागवर्ती अलोकाकाश का एक प्रदेश स्पृष्ट होता है। वगत आकाशप्रदेश धर्मास्तिकाय के दो प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। जिस अलोकाकाश के एक प्रदेश के आगे, नीचे और ऊपर धर्मास्तिकाय के प्रदेश हैं, वह धर्मास्तिकाय के तीन प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। स्थापना इस प्रकार है- -.-.' / जो श्राकाश प्रदेश लोकान्त के एक कोने में स्थित है, वह तदाश्रित (तदवगाढ) धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से तथा ऊपर या नीचे रहे हुए अन्य एक प्रदेश से और दो दिशाओं में रहे हुए दो प्रदेशों से ; इस प्रकार धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से स्पृष्ट होता है / स्थापना इस प्रकार है / जो आकाश प्रदेश, धर्मास्तिकाय के नीचे के एक प्रदेश से ऊपर के एक प्रदेश से तथा दो दिशाओं में रहे हुए दो प्रदेशों से और वहीं रहे हुए धर्मास्तिकाय के एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है, वह इस प्रकार धर्मास्तिकाय पांच प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। जो अाकाशप्रदेश धर्मास्तिकाय के ऊपर के एक प्रदेश से, नीचे के एक प्रदेश से, तीन दिशाओं के तीन प्रदेशों से और वहीं रहे हुए एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है; वह छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। जो आकाशप्रदेश धर्मास्तिकाय के ऊपर और नीचे के एक-एक प्रदेश से तथा चार दिशानों के चार प्रदेशों से और वहीं रहे हुए एक प्रदेश से स्पृष्ट होता है, वह इस प्रकार सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी उसकी स्पर्शना जाननी चाहिए। लोकाकाश और अलोकाकाश का एक प्रदेश, छहों दिशाओं में रहे हुए आकाशास्तिकाय के प्रदेशों से स्पष्ट होता है। इसलिए उसकी स्पर्शना छह प्रदेशों से बताई गई है। यदि अलोकाकाश का प्रदेशविशेष हो तो वह जीवास्तिकाय से स्पृष्ट नहीं होता, क्योंकि वहाँ जीवों का अभाव है / यदि लोकाकाश का प्रदेश हो तो, वह जीवास्तिकाय से स्पृष्ट होता है।' इसी प्रकार पुद्गलास्तिकाय के प्रदेशों तथा अद्धाकाल के समयों की स्पर्शना के विषय में समझना चाहिए। यदि जीवास्तिकाय का एक प्रदेश लोकान्त के एक कोण में होता है तो धर्मास्तिकाय के चार प्रदेशों से (नीचे या ऊपर के एक प्रदेश से, दो दिशाओं के दो प्रदेशों से और एक तदाश्रित प्रदेश से) स्पृष्ट होता है, क्योंकि स्पर्शक प्रदेश सबसे अल्प होते हैं। जीवास्तिकाय का एक प्रदेश, एक आकाशप्रदेशादि पर केवलिसमुद्घात के समय ही पाया जाता है। उत्कृष्ट पद में जीवास्तिकाय का एक प्रदेश धर्मास्तिकाय के सात पूर्वोक्त प्रदेशों से स्पृष्ट होता है / इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से भी स्पर्शना जाननी चाहिए / 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 611 (ब) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 5, पृ. 2206 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org