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________________ 216 ] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र विवेचन-रोह अनगार के प्रश्न : भगवान महावीर के उत्तर-प्रस्तुत बारह सूत्रों (13 से२४ तक) में लोक-अलोक, जीव-अजीव, भवसिद्धिक-अभवसिद्धक, सिद्धि-असिद्धि, सिद्ध-संसारी, लोकान्त-अलोकान्त, अवकाशान्तर, तनु वात, घनवात, घनोदधि, सप्त पृथ्वी, द्वीप, सागर, वर्ष, नारकी, प्रादि चौबीस दण्डक के जीव, अस्तिकाय, समय, कर्म, लेश्या, दृष्टि, दर्शन, ज्ञान, संज्ञा, शरीर, योग, उपयोग, द्रव्य प्रदेश और पर्याय तथा काल, इसमें परस्पर पूर्वापर क्रम के संबंध में रोहक अनगार द्वारा पूछे गए प्रश्न और श्रमण भगवान महावीर द्वारा प्रदत्त उत्तर अंकित हैं। इन प्रश्नों के उत्थान के कारण कई मतवादी लोक को बना हुआ, विशेषत: ईश्वर द्वारा रचित मानते हैं, इसी तरह कई लोक आदि को शून्य मानते हैं / जीव-अजीव दोनों को ईश्वरकृत मानते हैं, कई भतवादी जीवों को पंचमहाभूतों (जड़) से उत्पन्न मानते हैं, कई लोग संसार से सिद्ध मानते हैं, इसलिए कहते हैं--पहले संसार हुआ, उसके बाद सिद्धि या सिद्ध हुए / इसी प्रकार कई वर्तमान या भूतकाल को पहले और भविष्य को बाद में हुआ मानते हैं, इस प्रकार तीनों कालों की आदि मानते हैं / विभिन्न दार्शनिक चारों गति के जीवों की उत्पत्ति के संबंध में आगे-पीछे की कल्पना करते हैं / इन सब दृष्टियों के परिप्रेक्ष्य में रोह-अनगार के मन में लोक प्रलोक, जीव-अजीव आदि विभिन्न पदार्थों के विषय में जिज्ञासा उत्पन्न हुई और भगवान् से उसके समाधानार्थ उन्होंने विभिन्न प्रश्न प्रस्तुत किये। भगवान् ने कहा- इन सब में पहले पीछे के क्रम का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि ये सब शाश्वत और अनादिकालीन हैं। इन्हें किसी ने बनाया नहीं है / कर्म आदि का कर्ता आत्मा है किन्तु प्रवाह रूप से वे भी अनादि-सान्त हैं। तीनों ही काल द्रव्यदृष्टि से अनादि शाश्वत है, इनमें भी आगे पीछे का क्रम नहीं होता। अष्टविधलोकस्थिति का सदष्टान्त-निरूपण-- 25. [1] भंते त्ति भगवं गोतमे समणं जाव एवं वदासि-कतिविहा णं भंते ! लोयद्विती पष्णता? ___ गोयमा ! अदुबिहा लोयट्टिती पण्णत्ता। तं जहा--प्रागासपतिद्विते वाते 1, वातपतिद्विते उदही 2, उदहिपतिद्धिता पुढवी 3, पुढ विपतिहिता तस-थावरा पाणा 4, अजीवा जोवपतिहिता 5, जीवा कम्मपतिद्विता 6, अजीवा जीवसंगहिता 7, जीवा कम्मसंगहिता / [25-1 प्र.] 'हे भगवन्' ! ऐसा कह कर गौतम स्वामी ने श्रमण भगवान् महावीर स्वामी से यावत् ...." इस प्रकार कहा-भगवन् ! लोक की स्थिति कितने प्रकार की कही गई है ? [25-1 उ.] 'गौतम ! लोक की स्थिति पाठ प्रकार की कहो गई है। वह इस प्रकार हैआकाश के आधार पर वायु (तनुवात) टिका हुआ है। वायु के आधार पर उदधि है; उदधि के आधार पर पृथ्वी है, बस और स्थावर जीव पृथ्वी के आधार पर हैं; अजीव जीवों के आधार पर टिके हैं; (सकर्मक जीव) कर्म के आधार पर हैं; अजीवों को जीवों ने संग्रह कर रखा है, जीवों को कर्मों ने संग्रह कर रखा है। 1. भगवती मूत्र अ. वृत्ति, पत्रांक 81, 82 -- ---- Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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