________________ 284] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [29-6 प्र.] (भगवन् ! वह धर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) अद्धाकाल के कितने समयों से स्पृष्ट होता है ? [26-6 उ.] (गौतम ! वह) कथंचित् स्पृष्ट होता है और कथंचित् स्पृष्ट नहीं होता। यदि स्पृष्ट होता है तो नियमतः अनन्त समयों से स्पृष्ट होता है। 30. [1] एगे भंते ! अहम्मऽस्थिकायपएसे केवतिरहि धम्मऽस्थिकायपएसेहि पुट्ठ ? गोयमा ! जहन्नपए चहि, उक्कोसपए सत्तहिं / [30-1 प्र.] भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? 30-1 उ.] (गौतम ! वह अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश,) धर्मास्तिकाय के जघन्य पद में चार और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [2] केवतिएहि अहम्मऽस्थिकायपदेसेहि पुढे ? जहन्नपए तोहि, उक्कोसपदे हिं / सेसं जहा धम्मऽस्थिकायस्स / [30-2 प्र.] (भगवन् ! अधर्मास्तिकाय का एक प्रदेश) कितने अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [30-2 उ.] (गौतम ! वह) जघन्य पद में तीन और उत्कृष्ट पद में छह प्रदेशों से स्पृष्ट होता है / शेष सभी वर्णन धर्मास्तिकाय के वर्णन के समान समझना चाहिए / 31. [1] एगे भंते ! भागासऽथिकायपएसे केवतिएहि धम्मऽस्थिकायपएसेहिं पुढे ? / सिय पुढे, सिय नो पु? / जति पुढे जहन्नपदे एक्केण वा दोहि वा तोहि का चहिं वा, उक्कोसप [31-1 प्र.] भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के कितने प्रदेशों से स्पृष्ट होता है ? [31-1 उ.] (गौतम ! अाकाशास्तिकाय का एक प्रदेश, धर्मास्तिकाय के प्रदेश से) कदाचित् स्पृष्ट होता है, कदाचित् स्पृष्ट नहीं होता / यदि स्पृष्ट होता है तो जघन्य पद में एक, दो, तीन या चार प्रदेशों से और उत्कृष्ट पद में सात प्रदेशों से स्पृष्ट होता है। [2] एवं अहम्मऽस्थिकायपएसेहि वि। [31-2] इसी प्रकार अधर्मास्तिकाय के प्रदेशों से स्पृष्ट के विषय में जानना चाहिए। [3] केवतिएहि आगासऽस्थिकायपदेसेहि ? हिं / [31-3 प्र.] (भगवन् ! आकाशास्तिकाय का एक प्रदेश) आकाशास्तिकाय के कितने प्रदेशों से (स्पृष्ट होता है ? ) [31-3 उ.] (गौतम ! वह) छह प्रदेशों से (स्पृष्ट होता है / ) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org