________________ 278] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 17. अगेयो गं भंते ! दिसा किमादीया किपवहा कतिपएसादीया कतिपएसविस्थिण्णा फलिपदेसिया किपज्जवसिया किसंठिया पन्नत्ता? ___ गोयमा ! अग्गेयी णं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा एगपएसादीया एगपएसविस्थिण्णा अणुत्तरा, लोगं पडुच्च असंखेज्जपएसिया, अलोग पडुच्च अणंतपएसिया, लोगं पडुच्च सादीया सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च सादीया अपज्जवसिया, छिन्नमुत्तावलिसंठिया पन्नत्ता / [17 प्र.] भगवन् ! आग्नेयी दिशा के आदि में क्या है ? उसका उद्गम (प्रवह) कहाँ से है ? उसके प्रादि में कितने प्रदेश हैं ? वह कितने प्रदेशों के विस्तार वाली है ? वह कितने प्रदेशों वाली है ? उसका अन्त कहाँ होता है ? और उसका संस्थान (ग्राकार) कैसा है ? [17 उ.] गौतम ! आग्नेयी दिशा के आदि में रुचकप्रदेश हैं। उसका उद्गम (प्रबह) भी रुचकप्रदेश से है / उसके आदि में एक प्रदेश है। वह अन्त तक एक-एक प्रदेश के विस्तार वाली है / वह अनुत्तर (उत्तरोत्तरवृद्धि से रहित) है / वह लोक की अपेक्षा असंख्यातप्रदेश वाली है और अलोक की अपेक्षा अनन्तप्रदेश वाली है। वह लोक-ग्राश्रयी सादि-सान्त है और अलोक-प्राश्रयी सादि-अनन्त है / उसका आकार (संस्थान) टूटी हुई मुक्तावली (मोतियों की माला) के समान है। 18. जमा जहा इंदा। [18] याम्या का स्वरूप ऐन्द्री के सामान समझना चाहिए / 19. नेरती जहा अग्गेयी। [16] नैऋती का स्वरूप आग्नेयी के समान मानना चाहिए। 20. एवं जहा इंदा तहा दिसाओ चत्तारि वि / जहा अग्गेयी तहा चत्तारि वि विदिसाओ। [20] (संक्षेप में) ऐन्द्री दिशा के समान चारों दिशाओं का तथा आग्नेयी दिशा के समान चारों विदिशाओं का स्वरूप जानना चाहिए। 21. विमला गं भंते ! दिसा किमादीया०, पुच्छा। गोयमा ! विमला णं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा चउप्पएसादीया, दुपदेसपिस्थिण्णा अणुत्तरा, लोगं पडुच्च० सेसं जहा अग्गेयीए, नवरं रुयगसंठिया पन्नत्ता। 21 प्र.] भगवन् ! विमला (ऊर्ध्व) दिशा के आदि में क्या है ? इत्यादि आग्नेयी के समान प्रश्न / [21 उ.] गौतम ! विमल दिशा के आदि में रुचक प्रदेश हैं। वह रुचकप्रदेशों से निकली है। उसके आदि में चार प्रदेश हैं। वह अन्त तक दो प्रदेशों के विस्तार वाली है। वह अनुत्तर (उत्तरोत्तर वृद्धि रहित) है / लोक-प्राश्रयी वह असंख्यात प्रदेश वाली है, जबकि अलोक प्राश्रयी अनन्त प्रदेश वाली है, इत्यादि शेष सब वर्णन आग्नेयी के समान कहना चाहिए / विशेषता यह है कि वह (विमला दिशा) रुचकाकार है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org