________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 4] [277 कोण और उत्तर एवं पूर्व के बीच की 'ईशानकोण' विदिशा कहलाती है। रुचकप्रदेशों की सीध में ऊपर की ओर ऊर्ध्वदिशा और नीचे की पोर अधोदिशा है। इन दसों दिशाओं के गुणनिष्पन्न नाम ये हैं—(१) ऐन्द्री, (2) आग्नेयी, (3) याम्या, (4) नैऋती, (5) वारुणी, (6) वायव्या (6) सौम्या, (8) ऐशानी, (6) विमला और (10) तमा / ' कठिन शब्दार्थ-आयाममज्झे---लम्बाई का मध्यभाग / उवासंतरस्स–अवकाशान्तर, आकाशखण्ड का, साइरेग--सातिरेक, कुछ अधिक / ओगाहिता उल्लंघन–अवगाहन करके / हेटिं-- नीचे / पत्थटे--प्रस्तट-पाथड़ा / उवरिम-हेटिलेसु-ऊपर और नीचे के / खुड्डयपयरेसु-क्षुद्र (छोटे लघुतम) प्रतरों में / प्रवहति-प्रवहित--प्रवत्तित होती हैं / ऐन्द्रो आदि दस दिशा-विदिशा का स्वरूपनिरूपण : छठा-दिशा-विदिशा-प्रवहादिद्वार 16. इंदा णं भंते ! दिसा किमादीया किपवहा कतिपदेसादीया कतिपदेसुत्तरा कतिपदेसिया किपज्जवसिया किसंठिया पन्नता? गोयमा ! इंदा णं दिसा रुयगादीया रुयगप्पवहा दुपदेसादीया दुपदेसुत्तरा, लोग पडुच्च प्रसंखेज्जपएसिया, अलोगं पडुच्च अणंतपदेसिया, लोगं पडुच्च सादीया सपज्जवसिया, अलोगं पडुच्च सादोया अपज्जव सिया, लोगं पडुच्च मुरजसंठिया, प्रलोग पडुच्च सगडुद्धिसंठिता पन्नत्ता। [16 प्र.] भगवन् ! इन्द्रा (ऐन्द्री-पूर्व) दिशा के मादि (प्रारम्भ) में क्या है ?, वह कहाँ से निकली है ? उसके आदि (प्रारम्भ) में कितने प्रदेश हैं ? उत्तरोत्तर कितने प्रदेशों की वृद्धि होती है ? वह कितने प्रदेश वालो है ? उसका पर्यवसान (अन्त) कहाँ होता है ! और उसका संस्थान कैसा है ? [16 उ.] गौतम ! ऐन्द्री दिशा के प्रारम्भ में रुचक प्रदेश' है / वह रुचक प्रदेशों से निकली है / उसके प्रारम्भ में दो प्रदेश होते हैं / आमे दो-दो प्रदेशों की उत्तरोत्तर वृद्धि होती है। वह लोक की अपेक्षा से असंख्यातप्रदेश वाली है और अलोक की अपेक्षा से अनन्तप्रदेश वाली है / लोक-नाश्रयी वह सादि-सान्त (आदि और अन्त सहित) है और अलोक-प्राश्रयी वह सादि अनन्त है / लोक-याश्रयी वह मुरज (मृदंग) के आकार की है, और अलोक-ग्राश्रयी वह ऊर्वशकटाकार (शकटोद्धि) की है। (ख) भगदती. (हिन्दीविवेचन) भा. 5, पृ. 2184 1. (क) भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 607 2. वही, भा. 5. पृ. 2184 देखो आकृतिनं.१ देखो आकृति नं.२ रुचक प्रदेश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org