________________ 114] [ व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र सा णं कुक्कुडी कतो ? भंते ! अंगातो / एवामेव रोहा! से य अंडए सा य कुक्कुडी, पुदिव पेते, पच्छा पेते, दो वेते सासता भावा, प्रणाणुपुव्वी एसा रोहा! [16 प्र.] भगवन् ! पहले अण्डा और फिर मुर्गी है ? या पहले मुर्गी और फिर अण्डा है ? [16 उ.] (भगवान्-) हे रोह ! वह अण्डा कहाँ से आया ? (रोह-) भगवन् ! वह मुर्गी से पाया। (भगवान्-) वह मुर्गी कहाँ से प्राई ? (रोह--) भगवन् ! वह अण्डे से हुई। (भगवान्-) इसी प्रकार हे रोह ! मुर्गी और अण्डा पहले भी है, और पीछे भी है। ये दोनों शाश्वतभाव हैं / हे रोह ! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है। 17. पुब्धि भंते ! लोअंते ? पच्छा अलोयंते ? पुर्व प्रलोअंते ? पच्छा लोअंते ? रोहा ! लोअंते य प्रलोभंते य जाव' अणाणु पुन्वी एसा रोहा ! [17 प्र.] भगवन् ! पहले लोकान्त और फिर अलोकान्त है ? अथवा पहले अलोकान्त और फिर लोकान्त है ? [17 उ.] रोह ! लोकान्त और अलोकान्त, इन दोनों में यावन् कोई क्रम नहीं है / 18. पुदिव भंते ! लोअंते ? पच्छा सत्तमे प्रोवासंतरे ? पुच्छा। रोहा ! लोअंते य सत्तमे य ओवासंतरे पुब्धि पेते जाव प्रणाणुपुवी एसा रोहा ! [18 प्र.] भगवन् ! पहले लोकान्त है और फिर सातवाँ अवकाशान्तर है ? अथवा पहले सातवां अवकाशान्तर है और पीछे लोकान्त है ? [18 उ.] हे रोह ! लोकान्त और सप्तम अवकाशान्तर, ये दोनों पहले भी हैं और पीछे भी हैं। इस प्रकार यावत्-हे रोह! इन दोनों में पहले-पीछे का क्रम नहीं है / 16. एवं लोअंते य सत्तमे य तणुवाते / एवं घणवाते, घणोदही, सत्तमा पुढवी / [19] इसी प्रकार लोकान्त और सप्तम तनुबात, इसो प्रकार घनवात, घनोदधि और सातवीं पृथ्वी के लिए समझना चाहिए। 20. एवं लोअंते एककेकेणं संजोएतब्वे इमेहि ठाहि, तं जहाप्रोवास बात घण उदही पुढवी दीवा य सागरा वासा / नेरइयादी अस्थिय समया कम्माइं लेस्साप्रो // 1 // 1. 'जाव' पद से सू. 16 में अंकित 'पुब्बि पेते' से लेकर 'प्रणाणुपुयी एसा रोहा' तक का पाठ समझ लेना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org