________________ तेरहवां शतक : उद्देशक 2] [12 प्र.] भगवन् ! सौधर्मकल्प (प्रथम देवलोक) में कितने लाख विमानावास कहे गए हैं ? {12 उ.] गौतम ! (इसमें) बत्तीस लाख विमानावास कहे हैं / 13. ते णं भंते ! कि संखेज्जवित्थडा, असंखेज्जवित्थडा ? गोयमा ! संखेज्जवित्थडा वि, असंखेज्जविस्थडा वि / [13 प्र.] भगवन् ! वे विमानावास संख्येयविस्तृत हैं या असंख्येयविस्तृत ? [13 उ.] गौतम ! वे संख्येयविस्तृत भी हैं और असंख्येयविस्तृत भी हैं। 14. सोहम्मे णं भंते ! कप्पे बत्तीसाए विमाणावाससयसहस्सेसु संखेज्जवित्थडेसु विमाणेसु एगसमएणं केवतिया सोहम्मा देवा उववज्जति ? केवतिया तेउलेस्सा उवदज्जति ? ___ एवं जहा जोतिसियाणं तिन्नि गमा तहेव भाणियव्वा, नवरं तिसु वि संखेज्जा भाणियन्वा / ओहिनाणी ओहिदसणी य चयावेयव्वा / सेसं तं चेव / असंखेज्जवित्थडेसु एवं चेव तिन्नि गमा, नवरं तिसु वि गमएसु असंखेज्जा भाणियध्वा / प्रोहिनाणी ओहिदंसणी य संखेज्जा चयंति / सेसं तं चेव / [14 प्र.] भगवन ! सौधर्मकल्प के बत्तीस लाख विमानावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले विमानों में एक समय में कितने सौधर्मदेव उत्पन्न होते हैं ? और तेजोलेश्या वाले सौधर्मदेव कितने उत्पन्न होते हैं ? [14 उ.] जिस प्रकार ज्योतिष्कदेवों के विषय में तीन (उत्पाद, उद्वर्तन और सत्ता) आलापक कहे, उसी प्रकार यहाँ भी तीन पालापक कहने चाहिए। विशेष इतना है कि तीनों आलापकों में 'संख्यात' पाठ कहना चाहिए तथा अवधिज्ञानी-अवधिदर्शनी का च्यवन भी कहना चाहिए / इसके अतिरिक्त शेष सब कथन पूर्ववत् जानना चाहिए। असंख्यातयोजन विस्तृत सौधर्म-विमानावासों के विषय में भी इसी प्रकार तीनों पालापक कहने चाहिए / विशेष इतना है कि इसमें ('संख्यात' के बदले) 'असंख्यात' कहना चाहिए। किन्तु असंख्येय-योजन-विस्तृत विमानावासों में से अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनो तो 'संख्यात' ही च्यवते हैं। शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए। 15. एवं जहा सोहम्मे बत्तश्चया भणिया तहा ईसाणे वि छ गमगा भाणियत्वा / [15] जिस प्रकार सौधर्म देवलोक के विषय में छह पालापक कहे, उसी प्रकार ईशान देवलोक के विषय में भी छह (तीन संख्येय-विस्तृत विमान-सम्बन्धी और तीन असंख्येय-विस्तृत विमान-सम्बन्धी) पालापक कहने चाहिए। 16. सणकुमारे एवं चेव, नवरं इस्थिवेदगा उववज्जतेसु पन्नत्तेसु य न भणंति, असण्णी तिसु वि गमएसु न भण्णंति / सेसं तं चेव / 16] सनत्कुमार देवलोक के विषय में इसी प्रकार जानना चाहिए / विशेष इतना ही है कि सनत्कुमार देवों में स्त्रीवेदक उत्पन्न नहीं होते, सत्ताविषयक गमकों में भी स्त्रीवेदी नहीं कहे जाते / यहाँ तीनों पालापकों में असंज्ञी पाठ नहीं कहना चाहिए / शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org