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________________ 256] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र वाले नारकों में उत्पन्न हो जाता है / इसलिए, हे गौतम ! ऐसा कहा जाता है कि कृष्णलेश्यी आदि होकर जीव कृष्णलेश्या वाले नारकों में उत्पन्न हो जाता है / 29. [1] से नणं भते ! कण्हलेस्से जाव सुक्कलेस्से भवित्ता नीललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति ? हंता, गोयमा ! जाव उबवज्जति / [26-1 प्र.] भगवन् ! क्या कृष्णलेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होकर जीव (पुनः) नीललेश्या वाले नारकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? [26-1 उ.] हाँ, गौतम ! यावत् उत्पन्न हो जाते हैं / [2] से केपट्टणं जाव उववज्जति ? गोयमा ! लेस्सटाणेसु संकिलिस्समाणेसु वा विसुज्झमाणेसु वा नोललेस्सं परिणमति, नोललेसं परिणमित्ता नोललेस्सेसु नेरइएसु उववज्जंति, से तेण?णं गोयमा ! जाव उववज्जति / [26-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहते हैं कि यावत् वह नीललेश्या वाले नारकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? [26-2 उ.] गौतम ! लेश्या के स्थान उत्तरोत्तर संक्लेश को प्राप्त होते-होते तथा विशुद्ध होते-होते (अन्त में) नीललेश्या के रूप में परिणत हो जाते हैं। नीललेश्या के रूप में परिणत होने पर वह नीललेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं / इसलिए हे गौतम ! (पूर्वोक्त रूप से) यावत् उत्पन्न हो जाते हैं, ऐसा कहा गया है / 30. से नूणं भंते ! कण्हलेस्से नील जाव भवित्ता काउलेस्सेसु नेरइएसु उववज्जति ? एवं जहा नीललेस्साए तहा काउलेस्सा वि भाणियन्वा जाव से तेणटणं जाव उववज्जति / सेव भंते ! सेवं भंते ! त्ति० / तेरसमे सए पढमो उद्देसमो समत्तो // 13-1 / / [30 प्र.] भगवन् ! क्या वस्तुतः कृष्णलेश्यी, नीललेश्यी यावत् शुक्ललेश्यी होकर (जीव पुन:) कापोतलेश्या वाले नैरयिकों में उत्पन्न हो जाते हैं ? 30 उ.] जिस प्रकार नीललेश्या के विषय में कहा गया, उसी प्रकार कापोतलेश्या के विषय में भी, यावत्-इस कारण से हे गौतम ! यावत् उत्पन्न हो जाते हैं, यहाँ तक कहना चाहिए। हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है, यों कह कर यावत् गौतम स्वामी विचरते हैं। विवेचन–प्रस्तुत तीनों सूत्रों (28 से 30 तक) में एक लेश्या वाले जीव का प्रशस्त या Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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