________________ तैरहवां शतक : उद्देशक 1] [251 [13 प्र.] भगवन् ! पंकप्रभापृथ्वी में कितने नरकावास कहे गए हैं ? इत्यादि प्रश्न / [13 उ.] गौतम ! (पंकप्रभापृथ्वी में) दस लाख नरकाबास कहे गए हैं। जिस प्रकार शर्कराप्रभा के विषय में कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। विशेषता यह है कि (इस पृथ्वी से) अवधिज्ञानी और अवधिदर्शनी उद्वर्तन नहीं करते। शेष सभी कथन पूर्ववत् समझना चाहिए। 14. धूमप्पभाए पं० पुच्छा। गोयमा ! तिणि निरयावाससयसहस्सा० एवं जहा पंकप्पभाए। [14 प्र. भगवन् ! धूमप्रभापृथ्वी में कितने नरकावास कहे गए हैं ? इत्यादि प्रश्न / [14 उ.] गौतम ! (इसमें) तीन लाख नरकावास कहे गए हैं / जिस प्रकार पंकप्रभापृथ्वी के विषय में कहा, उसी प्रकार यहाँ भी कहना चाहिए। 15. तमाए णं भंते ! पुढवीए केवतिया निरयावास० पुच्छा। गोयमा ! एगे पंचूणे निरयावाससयसहस्से पन्नत्ते / सेसं जहा पंकप्पभाए / [15 प्र.] भगवन् ! तमःप्रभापृथ्वी में कितने नरकावास कहे गए हैं ? इत्यादि प्रश्न / [15 उ.] गौतम ! (उसमें) पांच कम एक लाख नरकावास कहे गये हैं / शेष (सभी कथन) पंकप्रभा के समान जानना चाहिए / 16. अहेसत्तमाए णं भंते ! पुढवीए कति प्रणुतरा महतिमहालया निरया पन्नत्ता ? गोयमा ! पंच अणुत्तरा जाव अप्पतिट्ठाणे / [16 प्र. भगवन् ! अधःसप्तमपृथ्वी में अनुत्तर और बहुत बड़े कितने महानरकावास कहे गए हैं, इत्यादि पृच्छा। [16 उ.] गौतम ! (उसमें ) पांच अनुत्तर और बहुत बड़े नरकावास कहे गए हैं, यथा- यावत् (काल, महाकाल,रौरव, महारौरव और) अप्रतिप्रष्ठान / 17. ते णं भंते ! कि संखेज्जवित्थडा असंखेज्जवित्थडा ? गोयमा ! संखेज्जवित्थडे य असंखेज्जवित्थडा य / [17 प्र.] भगवन् ! वे नरकावास क्या संख्यात योजन विस्तार वाले हैं, या असंख्यात योजन विस्तार वाले ? [17 उ.] गौतम ! एक (मध्य का अप्रतिष्ठान) नरकाबास संख्यात योजन विस्तार वाला है, और शेष (चार नरकावास) असंख्यातयोजन विस्तार वाले हैं / 18. अहेसत्तमाए गं भंते ! पुढवीए पंचसु अणुत्तरेसु महतिमहा० जाव महानिरएसु संखेज्जवित्थडे नरए एगसमएणं केवतिः / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org