________________ बारहवां शतक : उद्देशक 1] रत्नप्रभापृथ्वी के संख्यातविस्तृत नरकावासों में नरयिकों की संख्या से लेकर चरमअचरमों की संख्या से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर 8. इमोसे णं भंते ! रयणप्पभाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेमु संखेन्जविस्थडेसु नरएसु केवतिया नेरइया पण्णता ? 1, केवइया काउलेस्सा जाव केवतिया अणागारोवउत्ता पण्णता? 2-39, केवतिया अणंतरोववन्नगा पनत्ता? 40, केवतिया परंपरोक्वनगा पनत्ता? 41, केवतिया अणंतरोगाढा पन्नत्ता? 42, केवतिया परंपरोगाढा पन्नत्ता ? 43, केवतिया अणंतराहारा पन्नत्ता ? 44, केवतिया परंपराहारा पन्नत्ता ! 45, केवतिया अणंतरपज्जत्ता पन्नता? 46, केवतिया परंपरपज्जत्ता पन्नता? 47, केवतिया चरिमा पन्नत्ता? 48, केवतिया अचरिमा पन्नत्ता? 49 / गोयमा! इमोसे रयणप्पमाए पुढवीए तीसाए निरयावाससयसहस्सेसु संखेन्जवित्थडेसु नरएसु संखेज्जा नेरझ्या पत्नत्ता 1 / संखेज्जा काउलेस्सा पन्नत्ता 2 / एवं जाव संखेज्जा सन्नी पत्नत्ता 3-5 / असणी सिय अस्थि सिय नत्यि; जदि जस्थि जहन्नेणं एकको वा दो वा तिष्णि था, उक्कोसेणं संखेज्जा पन्नत्ता 6 / संखेज्जा भवसिद्धीया पन्नत्ता 7 / एवं जाव संखेज्जा परिग्गहसन्नोवउत्ता पन्नत्ता 8-21 / इथिवेदगा नस्थि 22 / पुरिसवेदगा नस्थि 23 / संखेज्जा नपुसमवेदगा पण्णत्ता 24 / एवं कोहकसायो वि 25 / माणकसाई जहा असण्णी 26 / एवं जाव लोभकसायी 27-28 / संखेज्जा सोतिदियोवउत्ता पन्नत्ता 29 / एवं जाव फातिदियोवउत्ता 30-33 / नोइंदियोवउत्ता जहा असण्णी 34 / संखेज्जा मणजोगी पन्नत्ता 35 / एवं जाव अणागारोवउत्ता 36-39 / अणंतरोववानगा सिय अस्थि सिय नत्थि; जदि अस्थि जहा असणी 40 / संखेज्जा परंपरोववनगा 41 / एवं जहा अणंतरोववानगा तहा अणंतरोगाढगा 42, अणंतराहारगा 44, अणंतरपज्जत्तमा 46 / परंपरोगाढगा जाव अचरिमा जहा परंपरोववानगा 43, 45, 47, 48, 49 / [प्र.] भगवन् ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से संख्यात योजन विस्तार वाले नरकों में (2) कितने नारक कहे गए हैं ? (2-36) कितने कापोतलेश्यी नारक कहे गए हैं ? यावत् कितने अनाकारोपयोग वाले नैरयिक कहे गए हैं ? (40) कितने अनन्तरोपपन्नक कहे गए हैं ? (41) कितने परम्परोपपन्नक कहे गए हैं ? (42) कितने अनन्तरावगाढ कहे गए हैं ? (43) कितने परम्पराबगाढ कहे गए हैं ?, (44) कितने अनन्तराहारक कहे गए हैं ?, (45) कितने परम्पराहारक कहे गए हैं ? (46) कितने अनन्तरपर्याप्तक कहे गए हैं ? (47) कितने परम्परपर्याप्तक कहे गए हैं ? (48) कितने चरम कहे गए हैं ? और (46) कितने अचरम कहे गए हैं ? [8 उ.) गौतम ! इस रत्नप्रभापृथ्वी के तीस लाख नरकावासों में से (1) संख्यात योजन विस्तार वाले नरकों में संख्यात नैयिक कहे गए हैं। (2) संख्यात कापोतलेश्यी जीव कहे गए हैं। (3-5) इसी प्रकार यावत् संख्यान संज्ञी जीव कहे गए हैं। (6) असंज्ञी जीव कदाचित् होते हैं और कदाचित् नहीं होते। यदि होते हैं तो जघन्य एक, दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात होते हैं / (7) भवसिद्धिक जी व संख्यात कहे गए हैं। (8-21) इसी प्रकार यावत् परिग्रहसंज्ञा के उपयोग वाले नरयिक संख्यात कहे गए हैं। (22) (वहाँ) स्त्रीवेदक नहीं होते, (23) पुरुषवेदक भी नहीं होते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org