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________________ 232] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [28-1 प्र. भगवन् ! द्विप्रदेशिक स्कन्ध आत्मरूप (सद्रूप) है, (अथवा) वह अन्य (असद्रूप) है ? [28-1 उ.] गौतम ! १-द्विप्रदेशी स्कन्ध कचित् सद्रूप है, २---कथंचित् असद्रूप है, और ३-सद्-असद्रूप होने से कथंचित अवतव्य है। ४-कथंचित् सद्रूप है और कथंचित् असद्रूप है, ५–कथंचित् स्वरूप है और सद्-असद्-उभयरूप होने से प्रवक्तव्य है और 6- कथंचित असद्रूप है और सद्-असद्-उभयरूप होने से प्रवक्तव्य है। [2] से केणटुणं भंते ! एवं० तं चेव जाव नो आया य, अवत्तव्वं-आया ति य नो आया ति य? गोयमा ! अप्पणो आदिट्टे आया१; परस्स आदि? नो प्राया 2; तदुभयस्स आट्टेि अवत्तव्वं-दुपएसिए खंधे प्राया ति य, नो आया ति य 3; देसे आदि? समावपज्जवे, देसे प्रादि? असम्भावपज्जवे दुपदेसिए खंधे प्राया य नो आया य 4; देसे आदिट्ठ सम्भावपज्जवे, देसे आदि? तदुभयपज्जवे दुपएसिए खंधे आया य, अवत्तव्वं–प्राया ति य नो प्राया ति य 5; देसे आदि असम्भावपज्जवे, देसे आदिट्ठ तदुभयपज्जवे दुपएसिए खंधे नो आया य, अवत्तध्वं—आता ति य नो आया ति य 6 / से तेण?णं तं चेव जाव नो पाया ति य / [28-2 प्र. भगवन् ! किस कारण से ऐसा कहा जाता है कि द्विप्रदेशी स्कन्ध कथंचित सद्रूप है, इत्यादि / ) यावत् कथंचित् असद्रूप है और सद् असद्-उभयरूप होने से अवक्तव्य है ? [28-2 उ.} गौतम ! (द्विप्रदेशी स्कन्ध) १-अपने स्वरूप की अपेक्षा से कथन किये जाने पर सद्प है, २.-पररूप की अपेक्षा से कहे जाने पर असद्रूप है और ३–उभयरूप की अपेक्षा से अवक्तव्य है तथा ४-सद्भावपर्याय वाले अपने एक देश की अपेक्षा से व्यपदिष्ट होने पर (उस देश की वर्णादि रूप पर्यायों से युक्त होने के कारण) सद्रूप है तथा असद्भाव पर्याय वाले द्वितीय देश से आदिष्ट होने पर, (उसकी वर्णादि पर्यायों से युक्त न होने के कारण) असद्रूप है। (इस दृष्टि से) कथंचित् सद्रूप और कथंचित् असद्रूप है। 5- सद्भाव पर्याय वाले एक देश की अपेक्षा से ग्रादिष्ट होने पर (सद्भाव पर्याय वाले अपने देश की सद्भाव पर्यायों से) सद्रूप और सद्भाव-असद्भाव वाले दूसरे देश की अपेक्षा से द्विप्रदेशी स्कन्ध सद्रूप-असदरूप-उभयरूप होने से अवक्तव्य है / 6... एक देश की अपेक्षा से असद्भाव पर्याय की विवक्षा से तथा द्वितीय देश के सद्भाव-असद्भावरूप उभय-पर्याय की अपेक्षा से द्विप्रदेशी स्कन्ध असद्रूप और प्रवक्तव्यरूप है। इसी कारण (हे गौतम !) द्विप्रदेशी स्कन्ध को ऐमा (पूर्वोक्त प्रकार से) यावत् कथंचित् असद्रूप और सद्-असद्-उभयरूप होने से अवक्तव्य कहा गया है / विवेचन-परमाणु पुद्गल और द्विप्रदेशी स्कन्ध के सद्-असदरूप भंग-प्रस्तुत दो सूत्रों (सू. 27-28) में परमाणु-पुद्गल एवं द्विप्रदेशी स्कन्ध के सद्-असद्रूप सम्बन्धी भंगों का निरूपण किया गया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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