________________ बारहवां शतक : उद्देशक 10] [233 परमाणु पुद्गल सम्बन्धी तीन भंग--इसके असंयोगी तीन भंग होते हैं—(१) सद्रूप, (2) असद्रूप एवं (3) अवक्तव्य / ' द्विप्रदेशी स्कन्ध सम्बन्धी छह भंग तीन असंयोगी भंग पूर्ववत् सकल स्कन्ध की अपेक्षा से (1) सद्रूप, (2) असद्रूप और (3) अवक्तव्य / तीन द्विकसंयोगी भंग देश की अपेक्षा से—(४) द्विप्रदेशी स्कन्ध होने से उसके एक देश की स्वपर्यायों द्वारा सद्प की विवक्षा की जाए और दूसरे देश की परपर्यायों द्वारा असद्रूप से विवक्षा की जाय तो द्विप्रदेशी स्कन्ध अनुक्रम से कथंचित् सद्प और कथंचित् असद्रूप होता है / (5) उसके एक देश की स्वपर्यायों द्वारा सद्रूप से विवक्षा की जाए और दूसरे देश से सद्-असद्-उभयरूप से विवक्षा की जाए तो कथंचित् सद्रूप और कथंचित् प्रवक्तव्य कहलाता है। (6) जब द्विप्रदेशी स्कन्ध के एक देश की पर्यायों द्वारा असद्रूप से विवक्षा की जाए और दूसरे देश को उभयरूप से विवक्षा की जाए तो असद्प और प्रवक्तव्य कहलाता है / कथंचित् सद्रूप, कथंचित् असद्रूप और कथंचित् अवक्तव्यरूप, इस प्रकार सातवाँ भंग द्विप्रदेशी स्कन्ध में नहीं बनता है। क्योंकि उसके केवल दो ही अंश हैं।' 29. [1] आया भंते ! तिपएसिए खंधे, अन्ने तिपएसिए खंधे ? गोयमा ! तिपएसिए खंधे सिए आया 1, सिय नो आया 2, सिय अवत्तव्वं-आता ति य नो आता ति य 3, सिय आया य नो प्राया य 4, सिय आया य नो पायानो य 5, सिय आयाओ य नो पाया य 6, सिय आया य अवत्तव्वं--आया ति य नो आया ति य 7, सिय आया य अवत्तब्वाइंट आयाओ य नो आयामो य 8, सिय आयाओ य अवत्तव्वं आया ति य नो आया ति य 6, सिय नो आया य प्रवत्तव्वं-आया ति य नो प्राया ति य 10, सिय नो आया य अवत्तव्वाइं-आयाओ य नो आयाओ य 11, सिय नो आयाओ य अवत्तव्य-आय ति य नो या ति य 12, सिय आया य नो प्राया य अवत्तब्वं-आया ति य नो आता ति य 13 / [26.1 प्र.) भगवन् ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध आत्मा (सद्रूप) है अथवा उससे अन्य (असद् |26-1 उ.] गौतम ! त्रिप्रदेशी स्कन्ध १-कथंचित् सद्रूप (आत्मा) है / २-कथंचित् असद्रूप (नो आत्मा) है / ३सद्-असद्-उभयरूप होने से कचित् अवक्तव्य है। 4-- कथंचित् आत्मा (सद्रूप) और कचित् नो आत्मा (असद्रूप) है / ५–कथंचित् सद्रूप (आत्मा) और अनेक असदरूप (नो आत्माएँ) हैं / ६–कथंचित् अनेक असद्रूप (आत्माएँ)तथा असद्प(नो आत्मा) है / ७---कचित् सद्रूप (आत्मा) और सद्-असद्-उभयरूप होने से प्रवक्तव्य है। ८–कथंचित् श्रात्मा (सद्रूप) तथा अनेक सद्-असद्रूप (आत्माएँ तथा नो प्रात्माएँ) होने से प्रवक्तव्य है / -कथंचित् आत्माएँ (अनेक असदप) तथा प्रात्मा-नो आत्मा (सद्-असद्) उभयरूप से अवक्तव्य है। १०---कथंचित् नो आत्मा (असद्रूप) तथा आत्मा नो आत्मा (सद्-असद्) उभय रूप होने से--प्रवक्तव्य है। ११–कथंचित् नो प्रात्मा (प्रसद्रूप), तथा आत्माएँ-नो आत्माएँ (अनेक सद्-असद्रूप)-उभयरूप होने से प्रवक्तव्य 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 595 2. वही, पत्र 595 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org