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________________ बारहवां शतक : उद्देशक 10] [229 16. आया भंते ! दसणे, अन्न बसणे? गोयमा ! आया नियमं दसणे, सणे विनियम पाया। [16 प्र.] भगवन् ! आत्मा दर्शनरूप है, या दर्शन उससे भिन्न है ? [16 उ.] गौतम ! प्रात्मा अवश्य (नियमत:) दर्शन रूप है और दर्शन भी नियमत: आत्मरूप है। 17. आया भंते ! नेरझ्याणं दसणे, अन्ने नेरल्याणं दसणे? गोयमा ! पाया नेरइयाणं नियम दंसणे , दंसणे वि से नियमं आया / [17 प्र. भगवन् ! नरयिकों की आत्मा दर्शनरूप है, अथवा नरयिक जीवों का दर्शन उनसे भिन्न है ? 17 उ. गौतम ! नरयिक जीवों को प्रात्मा नियमतः दर्शनरूप है, उनका दर्शन भी नियमतः प्रात्मरूप है। 18. एवं जाव वेमाणियाणं निरंतरं दंडओ। [18] इसी प्रकार यावत् वैमानिकों तक चौवीस ही दण्डकों (के दर्शन) के विषय में (कहना चाहिए।) विवेचन--'आत्मा दर्शन है, दर्शन आत्मा है'-इसी नियम के अनुसार यहाँ दर्शन के विषय में चौवीस दण्डकवर्ती जीवों के लिए कथन किया गया है। क्योंकि सम्यग्दृष्टि और मिथ्यादृष्टि दोनों में दर्शन सामान्यरूप से अवश्य रहता है।' 19. [1] आया भंते ! रयणप्पभा पुढयो, अन्ना रयणप्पभा पुढवी ? गोयमा ! रयणप्पमा पुढवी सिय आया, सिए नो आया, सिय अवत्तव्वं-प्राया ति य, नो प्राता ति य / ...[16-1 प्र.] भगवन् ! रत्नप्रभापृथ्वी प्रात्मरूप है या वह (रत्नप्रभापृथ्वी) अन्य रूप है ? [16-1 उ.] मौतम ! रत्नप्रभापृथ्वी कथंचित् अात्मरूप (सद्रूप) है और कञ्चित् नोअात्मरूप (असद्रूप) है तथा (आत्मरूप भी है एवं नो-प्रात्मरूप भी है, इसलिए) कथञ्चित् प्रवक्तव्य है। [2] से केण?णं भंते ! एवं वुच्चति रयणप्पभा पुढयी सिय आता, सिय नो आया, सिय अवत्तव्वं आता ति य, नो आया ति य' ? गोयमा ! अप्पणो आदि? आया, परस्स आदिटु नो पाता, तदुभयस्स आदिटु अवत्तव्यंरयणप्पभा पुढवी आया ति य, नो आया ति य / से तेण?णं तं चेव जाव नो आया ति य / [16-2 प्र.] भगवन् ! किस कारण से प्राप ऐमा कहते हैं कि रत्नप्रभापृथ्वी कथंचित् 1. भगवती. अ वृत्ति, पत्र 592 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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