________________ बारहवां शतक : उद्देशक 10] [221 (6) दर्शन-आत्मा-सामान्य-अवबोध रूप दर्शन से विशिष्ट प्रात्मा दर्शनात्मा है / दर्शनारमा सभी जीवों के होती है। (7) चारित्रात्मा-चारित्रविशिष्ट गुण से युक्त प्रात्मा को चारित्रात्मा कहते हैं, जो विरति वाले साधु-श्रावकों के होती है / (8) वीर्यात्मा-उत्थानादिरूप कारणों से युक्त सकरण वीर्य विशिष्ट प्रात्मा को वीर्यात्मा कहते हैं / जो सभी संसारी जीवों के होती है। सिद्धों में सकरण वीर्य न होने से उनमें वीर्यात्मा नहीं मानी जाती। द्रव्यात्मा आदि पाठों का परस्पर सहभाव-असहभाव-निरूपण 2. [1] जस्स गं भंते ! दविधाया तस्स कसायाया, जस्स कसायाया तस्स दवियाया.? गोयमा ! जस्स दवियाया तस्स कसायाता सिय अस्थि सिय नस्थि, जस्स पुण कसायाया तस्स ववियाया नियमं अस्थि / [2-1 प्र.] भगवन् ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, क्या उसके कषायात्मा होती है और जिसके कषायात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा होती है ? [2-1 उ.] गौतम ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, उसके कषायात्मा कदाचित् होती है और कदाचित् नहीं भी होती / किन्तु जिसके कषायात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा अवश्य होती है। [2] जस्स णं भंते ! दवियाता तस्स जोगाया ? एवं जहा दवियाया य कसायाता य भणिया तहा दवियाया य जोगाया य भाणियन्वा / [2-2 प्र.] भगवन् ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, क्या उसके योग-प्रात्मा होती है और जिसके योग-प्रात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा होती है ? [2-2 उ.] गौतम ! जिस प्रकार द्रव्यात्मा और कषायात्मा का सम्बन्ध कहा है, उसी प्रकार द्रव्यात्मा और योग-प्रात्मा का सम्बन्ध कहना चाहिए। [3] जस्स णं भंते ! दवियाया तस्स उपयोगाया ? एवं सवत्थ पुच्छा माणियत्वा / जस्स दवियाया तस्स उदयोगाया नियमं अस्थि, जस्स वि उवयोगाया तस्स वि दवियाया नियम अस्थि / जस्स दवियाया तस्स नाणाया भयणाए, जस्स पुण नाणाया तस्स दवियाता नियम अस्थि / जस्स दरियाया तस्स दसणाया नियमं अस्थि, जस्स वि दसणाया तस्स दवियाया नियम अस्थि / जस्स दवियाया तस्स चरित्ताया भयणाए, जस्स पुण चरित्ताया तस्स दवियाया नियमं अस्थि / एवं वीरियायाए वि समं। [2-3 प्र.] भगवन् ! जिसके द्रव्यात्मा होती है, क्या उसके उपयोगात्मा होती है और जिसके उपयोगात्मा होती है, उसके द्रव्यात्मा होती है ? इसी प्रकार शेष सभी आत्माओं के द्रव्यात्मा से सम्बन्ध के विषय में पृच्छा करनी चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org