________________ दसमो उद्देसओ : आता दशम उद्देशक : आत्मा प्रात्मा के पाठ प्रकार 1. कतिविधा णं भंते ! आता पन्नत्ता? गोयमा ! प्रदविहा प्राता पन्नता, तं जहा-दवियाया कसायाया जोगाया उवयोगाया गाणाया सणाया चरित्ताया वीरियाया। F1 प्र.] भगवन् ! अात्मा कितने प्रकार की कही गई है ? 11 उ.] गौतम ! आत्मा आठ प्रकार की कही गई है। वह इस प्रकार-(१) द्रव्यात्मा, (2) कषायात्मा, (3) योग-प्रात्मा, (4) उपयोग-प्रारमा, (5) ज्ञान-प्रात्मा, (6) दर्शन-आत्मा, (7) चारित्र-आत्मा और (8) वीर्यात्मा। . विवेचन-आत्मा का स्वरूप--जिसमें सदा उपयोग, अर्थात्-बोध रूप व्यापार पाया जाए, वह आत्मा है / ' उपयोग रूप लक्षण सामान्यतया सभी प्रात्माओं में पाया जाता है, किन्तु विशिष्ट गुण अथवा उपाधि को प्रधान मान कर प्रात्मा के आठ प्रकार बताए हैं। (1) द्रव्यात्मा-त्रिकालानुगामी देव, मनुष्य आदि विविध पर्यायों से युक्त द्रव्य रूप अात्मा द्रव्यात्मा है / यह सभी जीवों के होती है / (2) कषायात्मा-क्रोध, मान, माया, लोभ रूप कषाय और हास्यादि रूप छह नोकषाय से युक्त प्रात्मा कषायात्मा कहलाती है। यह आत्मा उपशान्तकषाय एवं क्षीणकषाय आत्माओं के सिवाय सभी संसारी जीवों के होती है। (3) योग-आत्मा--मन, बचन और काया के व्यापार को योग कहते हैं, तीनों योगों से युक्त आत्मा योग-आत्मा कहलाती है / अयोगी केवली और सिद्धों के अतिरिक्त सभी सयोगी जीवों के यह आत्मा होती है। (4) उपयोग-आत्मा-ज्ञान-दर्शनरूप उपयोग-प्रधान आत्मा उपयोग-प्रात्मा है। अथवा विवक्षित वस्तु के प्रति उपयोग की अपेक्षा से जिसमें वैसा उपयोग हो, वह भी उपयोगात्मा है। यह सिद्ध और संसारी सभी जीवों के होती है। (5) ज्ञान-आत्मा-विशेष अवबोध रूप सम्यग्ज्ञान से विशिष्ट प्रात्मा को ज्ञानात्मा कहते हैं। ज्ञानात्मा सम्यग्पदृष्टि जीवों के होती है। 1. 'प्रतधातोर्गमनार्थत्वेन ज्ञानार्थत्वाद् अतति-सन्ततमवगच्छति उपयोग लक्षणत्वादित्यात्मा।'—भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 581 2. वहीं, पत्र 289 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org