________________ बारहवां शतक : उद्देशक 9] [219 गोयमा ! सम्वत्थोवा अणुत्तरोववातिया भावदेवा, उबरिमगेवेज्जा भावदेवा संखेज्जगुणा, मज्झिमगेवेज्जा संखेज्जगुणा, हेद्विमगेवेज्जा संखेज्जगुणा, अच्चुए कप्पे देवा संखेज्जगुणा, जाव आणते कप्पे देवा संखेज्जगुणा एवं जहा जीवाभिगमे तिविहे देवपुरिसे अप्पाबहुयं जाव जोतिसिया भावदेवा असंखेज्जगुणा / सेवं भंते ! सेवं भंते ! ति० / // बारसमे सए : नवमो उद्देसमो समत्तो / / 12-9 // [33 प्र.] भगवन् ! भवनबासी, बाणव्यन्त र ज्योतिष्क और वैमानिक, तथा वैमानिकों में भी सौधर्म, ईशान, यावत् अच्युत, अवेयक एवं अनुत्तरोपपातिक विमानों तक के भावदेवों में कौन (देव) किस (देव) से अल्प, बहुत, तुल्य अथवा विशेषाधिक है ? [33 उ.] गौतम ! सबसे थोड़े अनुरोपपातिक भावदेव है, उनसे उपरिम अवेयक के भावदेव संख्यातगुणे अधिक हैं, उनसे मध्यम ग्रेवेयक के भावदेव संख्यातगुणे हैं, उनसे नीचे के ग्रैवेयेक के भावदेव संख्यात गुणे हैं। उनसे अच्युतकल्प के देव संख्यातगुणे हैं, यावत् प्रानतकल्प के देव संख्यात गुणे हैं। इससे आगे जिस प्रकार जीवाभिगमसूत्र की दूसरी प्रतिपत्ति के त्रिविध (जीवाधिकार) में देवपरुषों का अल्पबहत्त्व कहा है, उसी प्रकार यहाँ भी यावत ज्योतिषी भावदेव असंख्यात गुणे (अधिक) हैं--तक कहना चाहिए / 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है', यों कह कर श्री गौतम स्वामी यावत् विचरण करते हैं / विवेचन--प्रस्तुत सूत्र में विविध भावदेवों के अल्पबहुत्व का निरूपण किया गया है / भावदेवों के अल्पबहत्व में त्रिविधजीवाधिकार का अतिदेश-प्रस्तुत अल्पबहत्व जीवाभिगमसूत्रोक्त त्रिविध जीवाधिकार का जो अतिदेश किया गया है। वहाँ अल्पबहुत्व इस प्रकार वणित हैपारणकल्प से सहस्रारकल्प में भावदेव असंख्यातगुणे हैं, उनसे महाशुक्र में असंख्यातगुणे, उनसे लान्तक में असंख्यातगुणे, उनसे ब्रह्मलोक के देव असंख्यातगुणे हैं। उनसे माहेन्द्रकल्प के देव असंख्यातगुणे हैं / उनमे सनत्कुमार कल्प के देव असंख्यात गुणे, उनसे ईशान के देव असंख्यात गुणे हैं, और ईशान देवों से सौधर्म कल्प के देव संख्यात गुणा हैं। उनसे भवनवासी देव असंख्यात गुणे हैं। उनसे वागव्यन्तर देव असंख्यात गुणा हैं और वाणव्यन्तर से ज्योतिष्क भावदेव असंख्यातगुणा हैं।' बारहवां शतक : नौवाँ उद्देशक समाप्त / / 1. (क) भगबत्ती. अ. वृत्ति, पत्र 587 (ख) जीवाभिगम सूत्र प्रतिपत्ति 2, विविध जोवाधिकार, (आगमोदयसमिति) पत्ति, पत्र 71 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org