________________ 218] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र पंचविध देवों का अल्पबहुत्व 32. एएसि णं भंते ! भवियदव्वदेवाणं नरदेवाणं जाव भावदेवाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा? गोयमा ! सव्वत्थोवा नरदेवा, देवाहिदेवा संखेज्जगुणा, धम्मदेवा संखेज्जगुणा, भवियदव्यदेवा प्रसंखेज्जगुणा भावदेवा असंखेज्जगुणा। 32 प्र. भगवन् ! इन भव्यद्रव्यदेव नरदेव यावत् भावदेव में से कौन (देव) किन (देवों) से अल्प, बहुत, तुल्य या विशेषाधिक होते हैं ? [32 उ. गौतम ! सबसे थोड़े नरदेव होते हैं, उनसे देवाधिदेव संख्यात-गुणा (अधिक) होते हैं, उनसे धर्मदेव संख्यातगुण (अधिक) होते हैं, उनसे भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे होते हैं, और उनसे भी भावदेव असंख्यात गुणे होते हैं। विवेचन-प्रस्तुत सूत्र में पंचविधदेवों के अल्प-बहुत्त्व का निरूपण किया गया है / नरदेव सबसे थोड़े क्यों हैं ? ---इसका कारण यह कि प्रत्येक अवसर्पिणी-उत्सर्पिणी काल में भरत और ऐरवत क्षेत्र में, प्रत्येक में बारह-बारह चक्रवर्ती उत्पन्न होते हैं। तथा महाविदेहक्षेत्रीय विजयों में वासुदेवों के होने से, सभी विजयों में वे एक साथ उत्पन्न नहीं होते।' नरदेवों से देवाधिदेव संख्यातगुण है-इसका कारण यह है कि भरतादि क्षेत्रों में वे चऋत्तियों से दुगुने-दुगुने होते हैं और महाविदेहक्षेत्र में भी वे वासुदेवों के विद्यमान रहते भी उत्पन्न होते हैं।' देवाधिदेवों से धर्मदेव संख्यातगुणे क्यों ? - इसका कारण यह है कि साधु एक समय में कोटीसहस्र पृथक्त्व (दो हजार करोड़ से नौ हजार करोड़ तक) हो सकते हैं / 3 धर्मदेवों से भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे क्यों? --देवगतिगामी देविरत. अविरत सम्यग्दृष्टि अादि (मनुष्य तथा तियञ्चपंचेन्द्रिय) धर्मदेवों से असंख्यातगुणे अधिक होते हैं, इस कारण धर्मदेवों में भव्यद्रव्यदेव असंख्यातगुणे कहे गए हैं / भावदेव उनसे भी असंख्यातगुणे-इसलिए वताए गए हैं कि स्वरूप से ही वे भव्यद्रव्यदेवों से बहुत अधिक हैं।" भवनवासी आदि भावदेवों का अल्पबहुत्व 33. एएसि णं भंते ! भावदेवाणं-भवणवासीणं वाणमंतराणं जोतिसियाणं, वेमाणियाणं सोहम्मगाणं जाव अच्चुतगाणं, गेवेज्जगाणं अणुत्तरोववाइयाण य कयरे कयरेहितो जाव विसेसाहिया वा ? 1. भगवती. अ, वृत्ति पत्र 587 2. वही, पत्र 587 3. वही, पत्र 587 4. वही, पत्र 587 5. वही, पत्र 587 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org