________________ 214] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [22-1 उ.गौतम ! (वे) नरयिकों में उत्पन्न होते हैं, (किन्तु) न तो तिर्यञ्चों में उत्पन्न होते हैं, न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं और न ही देवों में उत्पन्न होते हैं। [2] जइ नेरइएसु उववज्जंति, सत्तसु वि पुढवीसु उववज्जति / {22-2 प्र.] भगवन् ! यदि नैरयिकों में उत्पन्न होते हैं (तो वे पहलो से सातवों नरकपृथ्वी में से किसमें उत्पन्न होते हैं ?) [22-2 उ.] गौतम ! (नैरयिकों में भी) वे सातों (नरक-) पृथ्वियों में उत्पन्न होते हैं / 23. [1] धम्मदेवा णं भंते ! अणंतरं० पुच्छा। गोयमा ! नो नेरइएसु उववज्जति, नो तिरि०, नो मणु०, देवेसु उववन्जति / [23-1 प्र.] भगवन् ! धर्मदेव आयुष्य पूर्ण कर तत्काल (विना अन्तर के) कहाँ उत्पन्न होते हैं ? [23-1 उ.] गौतम ! (धर्मदेव मर कर तत्काल) न तो नै रयिकों में उत्पन्न होते हैं, न तिर्यञ्चों में और न मनुष्यों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु देवों में उत्पन्न होते हैं / [2] जइ देवेसु उववज्जंति किं भवणवासि० पुच्छा / गोयमा! नो भवणवासिदेवेसु उववज्जति, नो वाणमंतर०, नो जोतिसिय०, वैमाणियदेवेसु उपपज्जति सम्बेसु वेमाणिएसु उत्रवज्जति जाव सम्वट्ठसिद्ध अगु० जाव उववज्जति / प्रत्थेगइया सिझति जाव अंतं करेंति। [23-2 प्र.] (भगवन् ! ) यदि वे देवों में उत्पन्न होते हैं तो क्या भवनवासिदेवों में उत्पन्न होते हैं, अथवा वाणव्यन्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं ? [23-2 उ.] गौतम ! वे न तो भवनवासियों में उत्पन्न होते हैं, न वाणव्यन्तर देवों में और न ज्योतिष्क देवों में उत्पन्न होते हैं, किन्तु वैमानिक देवों में- (यहाँ तक कि) सभी वैमानिक देवों में उत्पन्न होते हैं। (अर्थात्-प्रथम सौधर्मदेव से लेकर) यावत् सर्वार्थसिद्ध-अनुत्तरोपपातिक देवों में उत्पन्न होते हैं। उनमें से कोई-कोई धर्मदेव सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होते हैं यावत् सर्व दुःखां का अन्त कर देते हैं। 24. देवाहिदेवा अणंतरं उन्वट्टित्ता कहिं गच्छति ? कहिं उधवज्जति ? गोयमा ! सिझति जाव अंतं करेंति / [24 प्र.] भगवन् ! देवाधिदेव आयुष्यपूर्ण कर दूसरे ही क्षण कहाँ जाते हैं, कहाँ उत्पन्न होते हैं ? [24 उ.] गौतम ! वे सिद्ध होते हैं, यावत् सर्व दुःखों का अन्त करते हैं / 25. भावदेवा णं भंते ! अणंतरं उबट्टित्ता० पुच्छा। जहा वक्कतोए असुरकुमाराणं उध्वट्टणा तहा माणियव्या। [25 प्र.] भगवन् ! भावदेव, आयु पूर्ण कर तत्काल कहाँ उत्पन्न होते हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org