________________ बारहनां शतक : उद्देशक 9] [211 15. देवाहिदेवाणं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नणं बावरि वासाई, उक्कोसेणं चउरासोई पुग्धसयसहस्साई / [15 प्र.) भगवन् ! देवाधिदेवों की स्थिति सम्बन्धी पृच्छा ? [15 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य बहत्तर वर्ष को, और उत्कृष्ट चौरासी लाख पूर्व की है। 16. भावदेवाणं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्नेणं दसवाससहस्साई, उक्कोसेणं तेत्तीसं सागरोवमाइं। [16 प्र.] भगवन् ! भावदेवों की स्थिति कितने काल की है ? [16 उ ] गौतम ! (भावदेवों की) जघन्य स्थिति दस हजार वर्ष को और उत्कृष्ट तेतोस सागरोपम की है। विवेचन----प्रस्तुत पंचसूत्री (12 से 16 तक) में पूर्वोक्त पांच प्रकार के देवों को जघन्य और उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण किया गया है। ___ भव्यद्रव्यदेवों की स्थिति जघन्य अन्तर्मुहूर्त क्यों ? -अन्तर्मुहूर्त्त आयुष्य वाले पञ्चेन्द्रियतिर्यञ्च, देवरूप में उत्पन्न होते हैं, इसलिए भव्यद्रव्य देव की जघन्य स्थिति अन्तर्मुहर्त की बताई गई है। तीन पल्योषम की स्थितिबाले देवकुरु और उत्तरकुरु के मनुष्य और तिर्यञ्च भी देवों में उत्पन्न होते हैं, और वे भव्य-द्रव्यदेव होते हैं, उनकी उत्कृष्ट स्थिति तीन पल्योपम की है।' नरदेव (चक्रवर्ती) की स्थिति-नरदेव (चक्रवर्ती) की जघन्य स्थिति 700 वर्ष की होती है, ब्रह्मदत्त चक्रवर्ती को प्रायु इतनी ही थी। उत्कृष्ट स्थिति 84 लाख पूर्व को होती है, जैसे---भरतचक्रवर्ती की उत्कृष्ट अायु 84 लाख वर्ष की थी। धर्मदेव की जघन्य उत्कृष्ट स्थिति--जो मनुष्य अन्तर्मुहर्त प्रायु शेष रहते चारित्र (महावत स्वीकार करता है, उसकी अपेक्षा से धर्मदेव (चारित्रो साधुसाध्वो) को जघन्य स्थिति अन्तर्महर्त की कही गई है। कोई पूर्व कोटि वर्ष की आयुवाला मानव अष्ट वर्ष को प्रायु में प्रव्रज्या योग्य होने से पूर्व कोटि में पाठ वर्ष कम की आयु में चारित्र ग्रहण करे तो उसको अपेक्षा से धर्मदेव की उत्कृष्ट स्थिति देशोन पूर्व कोटि वर्ष की कही गई है। प्रतिमुक्तक मुनि या वन स्वामी, जो क्रमशः 6 वर्ष की एवं 3 वर्ष को प्रायु में प्रवजित हो गए थे, वह कादाचित्क है, अतः उनकी यहाँ विवक्षा नहीं है / देवाधिदेवों की जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति-चरम तीर्थंकर भगवान् महावीर स्वामी को जघन्य आयु 72 वर्ष की थी, इस अपेक्षा से देवाधिदेव को जघन्य स्थिति 72 वर्ष की कही है, तथा भगवान् ऋषभदेव को उत्कृष्ट प्रायु 84 लाख पूर्व को थी, इस अपेक्षा से देवाधिदेव को उत्कृष्ट स्थिति 84 लाख पूर्व की कही है। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 586 2. वही, पत्र 586 3. वही, पत्र 586 4. वही, पत्र 586 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org