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________________ 210] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र धर्मदेवों की उत्पत्ति-कोई धर्मदेव तभी बन सकते हैं, जब वे चारित्र (सर्वविरति) ग्रहण करें। छठी नरक पृथ्वी से निकले हुए जीव मनुष्यभव प्राप्त कर सकते हैं, परन्तु चारित्र ग्रहण नहीं कर सकते, तथा सप्तम नरकपृथ्वी, तेजस्काय, वायुकाय, असंख्यातवर्ष की आयुवाले कर्मभूमिज, अकर्मभूमिज और अन्तरद्वीपज मनुष्य, तिर्यञ्चों से निकले हुए जीव तो मनुष्यभव भी प्राप्त नहीं कर सकते, तब धर्मदेव (चारित्रयुक्त साधक) कैसे हो सकते हैं ? ' इसलिए इनसे धर्मदेवों की उत्पत्ति का निषेध किया गया है / देवाधिदेव की उत्पत्ति-प्रथम तीन-पृथ्वियों से निकले हुए जीव ही देवाधिदेव (तीर्थकर) पद प्राप्त कर सकते हैं, आगे की चार पृथ्वियों से नहीं।' भवनपति-सम्बन्धी उपपात का अतिदेश क्यों ?--बहुत-से स्थानों से आ कर जीव भवनवासी देव के रूप में उत्पन्न होते हैं क्योंकि उसमें असंज्ञी जीव भी आकर उत्पन्न होते है / इसलिए यहाँ भवनपति-सम्बन्धी उपपात का अतिदेश किया है। कठिन शब्दार्थ-वक्कतीए--ट्युत्क्रान्तिपद में / खोडेयव्वा-निषेध करना चाहिए।' पंचविधदेवों को जघन्य-उत्कृष्ट स्थिति का निरूपण 12. भविषदम्वदेवाणं भंते ! केवतियं कालं ठिती पन्नत्ता ? गोयमा ! जहन्नणं अंतोमुहत्तं, उक्कोसेणं तिण्णि पलिग्रोवमाई। [12 प्र.] भगवन् ! भव्य द्रव्यदेवों की स्थिति कितने काल की कही है ? [12 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्यतः अन्तर्मुहूर्त की है, और उत्कृष्टतः तीन पल्योपम की है। 13. नरदेवाणं० पुच्छा। गोयमा ! जहन्न णं सत्त वाससयाई, उक्कोसेणं चउरासीति पुव्वसयसहस्साई। [13 प्र.] भगवन् ! नरदेवों की स्थिति कितने काल की है ? [13 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य सात सौ वर्ष को और उत्कृष्ट चौरासी लाख पूर्व की है। 14. धम्मदेवाणं भंते ! * पुच्छा। गोयमा ! जहन्नणं अन्तोमुहत्तं, उक्कोसेणं देसूणा पुवकोडी। [14 प्र.] भगवन् ! धर्मदेवों की स्थिति कितने काल की है ? [14 उ.] गौतम ! (उनकी स्थिति) जघन्य अन्तर्मुहूर्त को और उत्कृष्ट देशोनपूर्व कोटि की है। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 586 2. वही, पत्र 586 3. वही, पत्र 586, 4. भगवती. (हिंदी विवेचन) भा.४, पृ. 2090 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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