________________ 208] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र [-1 उ. गौतम ! वे नै रयिकों से पाकर उत्पन्न होते हैं, किन्तु न तो मनुष्यों से प्रा कर उत्पन्न होते हैं और न तिर्यञ्चों से, देवों से भी उत्पन्न होते है / [2] जदि नेरतिरहितो उववज्जंति किं रयणप्पभापुढविनेरतिएहितो उववज्जंति जाव अहेसत्तमापुढविनेरतिएहितो उववज्जति ? गोयमा! रयणप्पभापुढविनेरतिहितो उववज्जति, नो सक्कर० जाव नो अहेसत्तमपुढविनेरतिहितो उववति। 8-2 प्र.] भगवत् ! यदि वे (नरदेव) नैरयिकों से पाकर उत्पन्न होते हैं, तो क्या रत्नप्रभापृथ्वी के नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं, (अथवा) यावत् अध:-सप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से पाकर उत्पन्न होते है ? [8-2 उ.] गौतम ! वे रत्नप्रभा-पृथ्वी के नै रयिकों में से (पाकर) उत्पन्न होते हैं, किन्तु शार्कराप्रभा-पृथ्वी के नै रयिकों से यावत् अध: सप्तमपृथ्वी के नैरयिकों से (पाकर) उत्पन्न नहीं होते / [3] जइ देवेहितो उक्वज्जति किं भवणवासिदेवेहितो उववज्जति, वाणमंतर-जोतिसियवेमाणियदेवहितो उवधज्जंति ? गोयमा! भवणवासिदेवेहितो वि उववज्जंति, वाणमंतर०, एवं सचदेवेसु उववाएयव्या वक्कतोभेदेणं जाव सम्वट्ठसिद्ध ति / 8-3 प्र. भगवन ! यदि वे देवों से (माकर) उत्पन्न होते हैं, तो क्या भवनवासी देवों से उत्पन्न होते हैं ? अथवा वाणव्यत्तर, ज्योतिष्क या वैमानिक देवों से (पाकर) उत्पन्न होते हैं ? इस प्रकार सभी देवों से उत्पत्ति (उपपात) के विषय में यावत् सर्वार्थसिद्ध तक, (प्रज्ञापनामूत्र के छठे) व्युत्क्रान्ति-पद में कथित भेद (विशेषता) के अनुसार कहना चाहिए। 9. धम्मदेवा णं भंते ! कओहिंतो उववज्जति कि नेरतिएहितो? एवं बक्कतोभेदेणं सम्वेसु उववाएयन्वा जाव सम्वसिद्ध त्ति / नवरं तमा-अहेसत्तमातेउ-वाउअसंखेज्जवासाउय-अकम्मभूमा-अंतरदीवगवज्जेसु / [प्र.] भगवन् ! धर्मदेव कहाँ से (पाकर) उत्पन्न होते हैं ? क्या वे नैरयिकों से उत्पन्न होते हैं ? इत्यादि पूर्ववत् प्रश्न / 6 उ.] गौतम ! यह सभी उपपात व्युत्क्रान्ति-पद में उक्त भेद सहित यावत्-सर्वार्थसिद्ध तक कहना चाहिए। परन्तु इतना विशेष है कि तम:प्रभा, अधःसप्तम पृथ्वी तथा तेजस्काय, वायुकाय, असंख्यात वर्ष की आयुवाल अकर्मभूमिक तथा अन्तरद्वीपक जीवों को छोडकर उत्पन्न होते हैं। 10. [1] देवाहिदेवा गं भंते ! कतोहितो उववज्जंति ? कि नेरइरहितो उववज्जति ? 0 पुच्छा ? गोयमा ! नेरइरहितो उववजंति, नो तिरि०, नो मणु०, देवेहितो वि उववति / 1. देखें-पग्णयणामुत्त भा. 1 छठा व्युत्क्रान्तिपद (महावीर जैन विद्यालय में प्रकाशित) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org