________________ बारहवां शतक : उद्देशक ] [203 लाउल्लोइयमहिए-लाइयं अर्थात्-गोबर आदि से पीठिका को भूमि लीपने, तथा उल्लोइयखड़िया मिट्टी आदि से दीवारों को पोतकर सफेदी करने से जो महित-पूजित होता है / ' नाग–सर्प या हाथी, मणि—पृथ्वीकायिक जीव विशेष / शीलादि-रहित वानरादि का नरकगामित्त्वनिरूपण 5. अह भंते ! गोलंगूलबसमे कुक्कुडवसभे मंडुक्कवसभे, एए णं निस्सीला निन्वया निरगुणा निम्मेरा निप्पच्चक्खाणपोसहोववासा कालमासे कालं किच्चा इमोसे रयणप्पभाए पुढवीए उपकोसणं सागरोवमद्वितीयंसि नरगंसि नेरतियत्ताए उववज्जेज्जा? समणे भगवं महावीरे वागरेति-'उववज्जमाणे उववन्ने त्ति वत्तन्वं सिया / [5 प्र. भगवन् ! यदि वानरवृषभ, (वानरों में महान् और चतुर), कुर्कुटवृषभ (बड़ा मुर्गा) एवं मण्डकवृषभ (बड़ा मेंढक) ये सभी निःशील, व्रतहित, गुणरहित. मर्यादा-रहित तथा प्रत्याख्यान-पौषधोपवास रहित हों, तो मरण के समय मृत्यु को प्राप्त हो (क्या) इस रत्नप्रभापथ्वी में उत्कृष्ट सागरोपम की स्थिति बाले नरक में नैरयिक के रूप में उत्पन्न होते हैं ? [5 उ.] श्रमण भगवान महावीर स्वामी कहते हैं-(हाँ, गौतम ! ये नैरयिकरूप से उत्पन्न होते हैं;) क्योंकि उत्पन्न होता हुआ उत्पन्न हुआ, ऐसा कहा जा सकता है। 6. अह भंते ! सोहे वग्घे जहा ओस प्पिणिउद्देसए (स० 7 उ० 6 सु० 36) जाव परस्सरे एए णं निस्सीला एवं चेव जाव वत्तन्वं सिया / [6 प्र.] भगवन् ! यदि सिंह, व्याघ्र, यावत् पाराशर (जो कि) सातवें शतक के अवसर्पिणी उद्देशक में (उ. 6 सू. 36 में) कथित हैं---ये सभी शीलरहित इत्यादि पूर्वोक्तवत् क्या (नैरयिक रूप में) उत्पन्न होते हैं ? [6 उ.] हाँ गौतम ! उत्पन्न होते हैं, यावत् उत्पन्न होता हुमा 'उत्पन्न हुना' ऐसा कहा जा सकता है। 7. अह भंते ! ढंके कंके विलए मददुए सिखी, एते णं निस्सीला सेसं तं चेव जाव बत्तन्वं सिया। सेवं भंते ! सेवं भंते ! त्ति जाव विहरह। वारसमे सए : अट्ठमो उद्देसओ समत्तो॥ 12.8 / / [7 प्र.] भगवन् ! (जो) ढंक (कौमा) कंक (गिद्ध) बिलक, मेंढक और मोर--ये सभी शोलरहित इत्यादि हों तो पूर्वोक्तवत् (नैरयिकरूप से) उत्पन्न होते हैं ? [7 उ.] हाँ, गौतम ! उत्पन्न होते हैं / शेष सब कथन यावत् कहा जा सकता है, (यहाँ तक) पूर्ववत् समझना चाहिए। 1. वही, पत्र 582 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org