________________ बारहवां शतक : उद्देशक 7] [199 [20.1 प्र.] भगवन् ! यह जीव, क्या सभी जीवों के माता-रूप में, पिता-रूप में, भाई के रूप में, भगिनी के रूप में, पत्नी के रूप में, पुत्र के रूप में, पुत्री के रूप में, तथा पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? 20-1 उ.] हाँ गौतम ! (यह जीव पूर्वोक्त रूपों में) अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है। [2] सयजीवाणं भंते / इमस्स जीवस्स माइत्ताए जाघ उववन्नपुवा ? हंता, गोयमा ! जाव अगंतखुत्तो। 20.2 प्र.] भगवन् ! सभी जीव क्या इस जीव के माता के रूप में यावत् पुत्रवधू के रूप में पहले उत्पन्न हुए हैं ? 20-2 उ. हाँ गौतम ! सब जीव, इस जीव के माता आदि के रूप में यावत् अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हुए हैं। 21. [1] अयं णं भंते ! जीवे सन्यजीवाणं परित्ताए वेरियताए धायगत्ताए यहगत्ताए पडिणीयत्ताए पच्चामित्तत्ताए उववन्नपुब्वे ? हंता, गोयमा ! जाव अणंतखुत्तो। [21-1 प्र.] भगवन् ! यह जीव क्या सब जीवों के शत्रु रूप में, वैरी-रूप में, घातक रूप में, वधक रूप में, प्रत्यनीक रूप में, तथा प्रत्यामित्र (शत्रु-सहायक) के रूप में पहले उत्पन्न हुआ है ? [21-1 उ.] हाँ गौतम! (यह जीव, सब जीवों के पूर्वोक्त शत्रु आदि रूपों में) अनेक बार अथवा अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है। [2] सव्वजीवा वि गं भंते ! . एवं चेव / [21-2 प्र.] भगवन् ! क्या सभी जीव (इस जीव के पूर्वोक्त शत्रु प्रादि रूपों में) पहले उत्पन्न हो चुके हैं ? [21-2 उ.] हाँ गौतम ! (सभी कधन) पूर्ववत् (समझना चाहिए।) 22. [1] अयं णं भंते ! जीवे सम्बजीवाणं रायत्ताए जुवरायत्ताए जाव सत्यवाहताए उववन्नधुब्वे ? हंता, गोयमा ! असई जाव अणंतखुत्तो। [22-1 प्र.] भगवन् ! यह जीव, क्या सब जीवों के राजा के रूप में, युवराज के रूप में, यावत् सार्थवाह के रूप में पहले उत्पन्न हो चुका है ? [ 22-1 उ.] गौतम ! (यह जीव, सब जीवों के राजा पा : के रूप में) अनेक बार या अनन्त बार पहले उत्पन्न हो चुका है। [2] सम्वजीवा पं० एवं चेव / / 622-2] इस जीव के राजा आदि के रूप में सभी जीवों की उत्पत्ति का कथन भी पूर्ववत् कहना चाहिए। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org