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________________ बारहवां शतक : उद्देशक 6] [185 हुप्रा या जाता हुअा, अथवा विक्रिया करता हुआ, या कामक्रीडा करता हुमा राहु, चन्द्रमा को दीप्ति को पश्चिम दिशा में प्राच्छादित करके पूर्वदिशा की ओर चला जाता है; तब चन्द्रमा पश्चिम में दिखाई देता है और राहु पूर्व में दिखाई देता है। जिस प्रकार पूर्व और पश्चिम के दो पालापक कहे हैं, उसी प्रकार दक्षिण और उत्तर के दो आलापक कहने चाहिए / इसी प्रकार उत्तर-पूर्व (ईशान कोण) और दक्षिण-पश्चिम (नैऋत्य कोण) के दो पालापक कहने चाहिए, और इसी प्रकार दक्षिण-पूर्व (आग्नेय कोण) एवं उत्तर-पश्चिम (वायव्य कोण) के दो पालापक कहने चाहिए। इसी प्रकार जब प्राता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुया या कामक्रीडा (परिचारणा) करता हुआ राहु, बार-बार चन्द्रमा की ज्योत्स्ना को प्रावृत करता रहता है, तब मनुष्य लोक में मनुष्य कहते हैं-राहु ने चन्द्रमा को ऐसे ग्रस लिया, राहु इस प्रकार चन्द्रमा को ग्रस रहा है।' __ जब प्राता हुअा या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुआ या कामक्रीडा करता हुया राहु चन्द्रद्युति को आच्छादित करके पास से होकर निकलता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं'चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला, इस प्रकार चन्द्रमा ने राहु की कुक्षि का भेदन कर डाला।' जब प्राता हुआ या जाता हुआ, अथवा विक्रिया करता हुअा या कामक्रीडा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की प्रभा (लेश्या) को प्रावृत करके वापस लौटता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं'राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया, राहु ने चन्द्रमा का वमन कर दिया।' [जब प्राता हुआ या जाता हुआ, अथवा विकुर्वणा करता हुआ या परिचारणा करता हुग्रा राहु, चन्द्रमा के प्रकाश को ढंक कर मध्य-मध्य में से होकर निकलता है, तब मनुष्य कहने लगते हैंराहु ने चन्द्रमा का प्रतिभक्षण (या अतिक्रमण) कर लिया, राहु ने चन्द्रमा का अतिभक्षण (अतिक्रमण) कर लिया / ] जब प्राता हुअा या जाता हुआ, अथवा विकुर्वणा करता हुआ या कामक्रीडा करता हुआ राहु, चन्द्रमा की दीप्ति (लेश्या) को नीचे से, (चारों) दिशाओं एवं (चारों) विदिशाओं से ढंक कर रहता है, तब मनुष्यलोक में मनुष्य कहते हैं-'राहु ने इस प्रकार चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है, राहु ने यों चन्द्रमा को ग्रसित कर लिया है।' विवेचन-राह : स्वरूप, नाम और वर्ण-प्रस्तुत दो सूत्रों में राह के स्वरूप का, उसके नौ नामों और उसके विमान के पांच वर्षों का प्रतिपादन किया गया है। राह द्वारा चन्द्रग्रसन की लोकभ्रान्तियों का निराकरण-(१) जब राह पूर्वादि दिशामों अथवा उत्तर-पूर्वादि विदिशाओं में से किसी एक दिशा अथवा विदिशा से होकर आता-जाता है, या विक्रिया अथवा परिचारणा करता है, तब राहु पूर्वादि में या ईशानादि दिग्विदिग् विभाग में चन्द्र के प्रकाश को प्राच्छादित कर देता है, उसी को लोग चन्द्रग्रहण (राहु द्वारा चन्द्र का ग्रसन) कहते हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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