________________ 184] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र जदा णं राह आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउव्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदलेस्सं आवरेमाणे पावरेमाणे चिति तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति--एवं खलु राहू चंदं गेण्हइ, एवं खलु राहू-चंदं गेण्हइ। __जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउधमाणे वा परियारेमाणे का चंदस्स लेस्सं आवरेत्ताणं पासेणं वोईवधइ तदा गं मणुस्सलोए मणुस्सा वदंति--एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना, एवं खलु चंदेणं राहुस्स कुच्छी भिन्ना। जदा णं राहू आगच्छमाणे वा गच्छमाणे वा विउध्वमाणे वा परियारेमाणे वा चंदस्स लेस्सं आवरेत्ताणं पच्चोसक्कइ तदा णं मणुस्सलोए मणुस्सा वदति- एवं खलु राहुणा चंदे बंते, एवं खलु राहुणा चंदे वंते। जया णं राहू प्रागच्छमाणे वा 4 चंदलेस्सं पावरेत्ताणं मझमझेणं बीतीवयति तदा णं मणुस्सा वदंति-राहुणा चंदे वतिचरिए, राहुणा चंदे वतिचरिए / जवा राहू आगच्छमाणे वा जाव परियारेमाणे वा चंदलेस्सं अहे सक्खि सपडिदिसि श्रावरेत्ताणं चिट्ठति तदा गं मणुस्सलोए मणुस्सा वदति--एवं खलु राहणा चंदे घत्थे, एवं खल राहुणा चंदे घत्थे। 2 प्र.] भगवन ! बहत से मनुष्य परस्पर इस प्रकार कहते हैं, यावत इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं कि निश्चित ही राहु चन्द्रमा को ग्रस लेता है, तो हे भगवन् ! क्या यह ऐसा ही है ? [2 उ.] गौतम ! यह जो बहुत-से लोग परस्पर इस प्रकार कहते हैं, यावत् इस प्रकार प्ररूपणा करते हैं, कि राहु चन्द्रमा को ग्रसता है, वे मिथ्या कहते हैं। मैं इस प्रकार कहता हूँ, यावत् प्ररूपणा करता हूँ-- "यह निश्चय है कि राहु महद्धिक यावत् महासौख्यसम्पन्न उत्तम वस्त्रधारी, श्रेष्ठ माला का धारक, उत्कृष्ट सुगन्ध-धर और उत्तम आभूषणधारी देव है।" राहु देव के नौ नाम कहे हैं-(१) शृगाटक, (2) जटिलक, (3) क्षत्रक, (4) खर, (5) दर्दुर, (6) मकर, (7) मत्स्य, (8) कच्छप और (2) कृष्णसर्प / राहुदेव के विमान पांच वर्ण (रंग) के कहे हैं--(१) काला, (2) नीला, (3) लाल, (4) पीला और (5) श्वेत / इनमें से राहु का जो काला विमान है, वह खंजन (काजल) के समान कान्ति (साभा) वाला है। राहुदेव का जो नीला (हरा) विमान है, वह हरी तुम्बी के समान कान्ति वाला है / राहु का जो लोहित (लाल) विमान है, वह मजीठ के समान प्रभा वाला है। राहु का जो पीला विमान है, वह हल्दी के समान वर्ण वाला है और राहु का जो शुक्ल (श्वेत) विमान है, वह भस्मराशि (राख के ढेर) के समान कान्ति वाला है। जब गमन-आगमन करता हुआ, विकुर्वणा (विक्रिया) करता हुआ तथा कामक्रीडा करता हुआ राहुदेव, पूर्व में स्थित चन्द्रमा की ज्योत्स्ना (लेश्या) को ढंक (आवृत) कर पश्चिम की अोर चला जाता है; तब चन्द्रमा पूर्व में दिखाई देता है और पश्चिम में राहु दिखाई देता है। जब प्राता Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org