________________ बारहवाँ शतक : उद्देशक 5] [181 सर्वद्रव्यों में कितने ही (धर्मास्तिकायादि) द्रव्य, उनके (अमूर्तद्रव्य के ) प्रदेश तथा पर्याय वर्ण-गन्ध-रसस्पर्शरहित समझना चाहिए, क्योंकि ये सब अमूर्त तथा जीवपरिणाम है।' पुद्गलास्तिकाय में वर्णादिप्ररूपणा- पुद्गल दो प्रकार के होते हैं-बादर और सूक्ष्म / पुदगल मूर्त हैं / बादर पुद्गल पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और पाठ स्पर्श वाले होते हैं / सूक्ष्म पुद्गल द्रव्य पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और चार स्पर्श बाले होते हैं। परमाणु-पुद्गल एक वर्ण, एक रस, एक गन्ध और दो स्पर्शवाला होता है। दो स्पर्श इस प्रकार हैं--स्निग्ध और उष्ण, या स्निग्ध और शीत अथवा रूक्ष और उष्ण, या रूक्ष और शीत / लेश्या में वर्णादि की प्ररूपणा-लेश्या दो प्रकार की है—द्रव्यलेश्या और भावलेश्या / द्रव्यलेश्या बादरपुदगल-परिणाम रूप होने से पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और पाठ स्पर्श वाली होती है। भावलेश्या जीव के आन्तरिक परिणाम रूप होती है। जीव के परिणाम अमूर्त होते हैं। इसलिए वह वर्ण-गन्ध-रस-स्पर्श रहित होती है। प्रदेश और पर्याय : परिभाषा-द्रव्य के निविभाग अंश को 'प्रदेश' कहते हैं, और द्रव्य के धर्म को 'पर्याय' कहते हैं / मूत्तं द्रव्यों के प्रदेश और परमाणु उन्हीं के समान वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्शयुक्त होते हैं, जबकि अमूर्त द्रव्यों के प्रदेश और परमाणु उन्हीं द्रव्यों के समान वर्णादि-रहित होते हैं। ___काल : वर्णादिरहित-अतीत और अनागत तथा सर्वकाल ये अमूर्त होने से वर्णादिरहित होते हैं। चतुःस्पर्शी, अष्टस्पर्शी और अरूपो-सर्वत्र चतु:स्पर्शी होने में सूक्ष्म परिणाम पुद्गलद्रव्य कारण है, और अष्टस्पर्शी होने में बादर-परिणाम पुद्गल द्रव्य कारण है, तथा अमूर्त (अरूपी) वस्तु वर्णादि से रहित होती है / यथा-चतुःस्पर्शी-१८ पापस्थानक, 8 कर्म, कार्मणशरीर, मनोयोग, वचन योग और सूक्ष्म पुद्गलास्तिकाय का स्कन्ध, ये 30 प्रकार के स्कन्ध वर्णादि से यावत् शीत उष्ण स्निग्ध और रूक्ष इन चार स्पर्शों से युक्त होते हैं। प्रष्टस्पर्शी-षद्रव्यलेश्या, 4 शरीर, घनोदधि धनवात, तनुवात, काययोग और बादर पुद्गलास्तिकाय का स्कन्ध इन 15 प्रकार के स्कन्धों में वर्णादि यावत् पाठों ही स्पर्श होते हैं / वर्णादिरहित-अठारह पापों से विरति, 12 उपयोग, षट् भावलेश्या, धर्मास्तिकायादि 5 द्रव्य, 4 बुद्धि, 4 अवग्रहादि, तीन दृष्टि, उत्थानादि 5 शक्ति और चार संज्ञा, इन 61 में वर्णादि नहीं पाये जाते, क्योंकि ये सभी अमूर्त एवं अरूपी होते हैं / 1. वियाहपण्णतिसुत्तं (मूलपाठटिप्पण) पृ. 589-590 2. (ख) कारणमेव तदत्यं सूक्ष्मो नित्यश्च भवति परमाणुः / एकरस-वर्ण-गन्धो द्विस्पर्श: कार्यलिंगश्च / (क) भगवती. अ. वत्ति, पत्र 574 (ख) भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 4, पृ. 2058 3. (क) भगवती. वृत्ति, पत्र 574 (ख) भगवती. (हिन्दी विवेचन) भा. 4, पृ. 2058 4, 'द्रव्यस्य निविभागा अशाः प्रदेशाः, पर्यवास्तु धर्माः / ' —भगवती. प्र. वत्ति पत्र 574 5. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 4. पृ. 2059 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org