________________ 180] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 30. सम्मद्दिष्टि-मिच्छादिद्वि-सम्मामिच्छाविट्ठी, चवखुदंसणे अचक्खुदंसणे ओहिदसणे केवलदसणे, आभिनिबोहियनाणे जाव विभंगनाणे, आहारसन्ना जाव परिग्गहसण्णा, एयाणि अवण्णाणि अरसाणि अगंधाणि अफासाणि / [30] सम्यग्दृष्टि, मिथ्यादृष्टि और सम्यग्मियादृष्टि, तथा चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन, अवधिदर्शन और केवलदर्शन, आभिनिबोधिक ज्ञान (से लेकर श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान, मनःपर्यवज्ञान, केवलज्ञान, मति-अज्ञान, श्रुत-अज्ञान और) विभगज्ञान (तक एवं) अाहार संज्ञा (भयसंज्ञा, मैथुनसंज्ञा) यावत् परिग्रहसंज्ञा, ये सब वर्णरहित गन्धरहित, रसरहित, और स्पर्शरहित हैं। 31. ओरालियसरीरे नाव तेयगसरीरे, एयाणि अटुफासाणि / कम्मगसरीरे चउफासे / मणजोगे वइजोगे य चउफासे / कायजोगे अट्ठफासे / [31] औदारिक शरीर (वैक्रिय शरीर, आहारकशरीर) यावत् तैजसशरीर ये अष्टस्पर्श वाले है। कार्मण शारीर, मनोयोग और वचनयोग, ये चार स्पर्श वाले हैं / काययोग अष्टस्पर्श वाला है / 32. सागारोवयोगे य अणागारोवयोगे य अवण्णा / 32] साकार-उपयोग और अनाकारोपयोग, ये दोनों वर्णादि से रहित हैं। 33. सव्वदन्वा गं भंते ! कतिवण्णा० पुच्छा। गोयमा! अत्थेगतिया सव्वदव्वा पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता। अत्थेगतिया सवदव्वा पंचवण्णा जाव चउफासा पन्नत्ता / अत्थेगतिया सव्वदम्वा एगवण्णा एगगंधा एगरसा दुफासा पन्नता / प्रथेगतिया सव्वदव्या अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता। [33 प्र.] भगवन् ! सभी द्रव्य कितने वर्णादि वाले हैं ? [33 उ.] गौतम ! सर्वद्रव्यों में से कितने ही पाँच वर्ण यावत् (पांच रस, दो गन्ध और) आठ स्पर्श वाले हैं / सर्वद्रव्यों में से कितने ही पांच वर्ण यावत् (पाँच रस, दो गन्ध और) चार स्पर्श वाले हैं / सर्वद्रव्यों में से कुछ (द्रव्य) एक वर्ण, एक गन्ध एक रस और दो स्पर्श वाले हैं / सर्वद्रव्यों में से कई वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श से रहित हैं। 34. एवं सन्यपएसा वि, सव्वपज्जवा वि / [34] इसी प्रकार (सर्वद्रव्य के समान) सभी प्रदेश और समस्त पर्यायों के विषय में भी उपर्युक्त विकल्पों का कथन करना चाहिए। 35. तीयद्धा अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता / एवं प्रणागयद्धा वि / एवं सव्वद्धा वि / [35] अतीत काल (श्रद्धा) वर्ण रहित यावत् स्पर्शरहित कहा गया है। इसी प्रकार अनागतकाल भी और समस्त काल (अद्धा) भी वर्णादि-रहित है। विवेचन-निष्कर्ष-धर्मास्तिकाय, अधर्मास्तिकाय, आकाशास्तिकाय, भावलेश्याएँ, तथा सम्यग्दृष्टि से लेकर परिग्रहसंज्ञा तक, साकार-निराकार उपयोग एवं अतीत-अनागत आदि सब काल, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org