________________ बारहवां शतक : उद्देशक 5] [179 24 उ.] गौतम ! औदारिक, वैक्रिय, आहारक और तेजस पुद्गलों की अपेक्षा (मनुष्य) पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और पाठ स्पर्श वाले कहे हैं। कार्मण पुद्गल और जीव की अपेक्षा से नैरयिकों के समान (कथन करना चाहिए।) 25. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणिया जहा नेरइया / [25] वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिकों के विषय में भी नैरयिकों के समान कथन करना चाहिए। विवेचन-नारक आदि अष्टस्पर्श, चतुःस्पर्श और वर्णादि से रहित क्यों ? नारक आदि तथा मनुष्य, पंचेन्द्रियतियंच, जो भी औदारिक, वैक्रिय, तेजस या आहारकशरीर वाले हैं, वे पांच वर्ण, दो गन्ध तथा पांच रस वाले हैं, तथा अष्टस्पर्शी हैं, क्योंकि ये चारों शरीर बादर-परिणाम वाले पुद्गल हैं, अतः बादर होने से ये अष्टस्पर्शी होते हैं / तथा कार्मण सूक्ष्म परिणाम-पुद्गल रूप होने से चतुःस्पर्शी है / जीव (आत्मा) में वर्ण, गन्त्र, रस और स्पर्श नहीं है / ' अतएव वह वर्णादिशून्य है। धर्मास्तिकाय से लेकर श्रद्धाकाल तक में वर्णादिप्ररूपणा 26. धम्मस्थिकाए जाव' पोग्गल स्थिकाए, एए सब्वे अवण्णा, नवरं पोग्गलत्यिकाए पंचवणे पंचरसे दुगंधे अट्टफासे पन्नत्ते / [26] धर्मास्तिकाय आदि सब (अधर्मास्तिकाय आकाशास्तिकाय और काल)वर्णादि से रहित हैं / विशेष यह है कि पुद्गलास्तिकाय में पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और पाठ स्पर्श कहे हैं / 27. नाणावरणिज्जे जाव अंतराइए, एयाणि चउफासाणि / [27] ज्ञानावरणीय (से लेकर) यावत् अन्तराय कर्म तक आठों कर्म, पांच वर्ण, दो गन्ध पांच रस और) चार स्पर्श वाले कहे हैं / 28. कण्हलेसा णं भंते ! कइवण्णा० पुच्छा ? दवलेसं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नता। भावलेसं पडुच्च अवण्णा अरसा अगंधा प्रफासा। [28 प्र] भगवन् ! कृष्णलेश्या में कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श कहे हैं ? [16 उ.] गौतम ! द्रव्यलेश्या की अपेक्षा से उसमें पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और पाठ स्पर्श कहे हैं और भावलेश्या की अपेक्षा से वह वर्णादि रहित है। 29. एवं जाव सुक्कलेस्सा। ___ [26] इसी प्रकार (नील, कापोत, पीत और पद्मलेश्या) यावत् शुक्ललेश्या तक जानना चाहिए। 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 574 2. जाव पद से अधम्मत्थिकार, मागासत्थिकाए, पोग्गलत्थिकाए, इत्यादि पाठ समझना चाहिए / Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org