________________ 178] व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 'उवासंतरे' : अर्थ- अवकाशान्तर / ' चौवीस दण्डकों में वर्णादि प्ररूपगा 19. नेरइया गं भंते ! कतिवण्णा जाव कतिफासा पन्नता ? गोयमा ! देउब्धिय-तेयाई पडुच्च पंचवणा पंचरसा दुगंधा अट्ठफासा पन्नत्ता / कम्मगं पडुच्च पंचवण्णा पंचरसा दुगंधा च उफासा पन्नता / जीवं पडुच्च अवण्णा जाव अफासा पन्नत्ता। [16 प्र. भगवन् ! नैरयिकों में कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श कहे हैं ? [16 उ.] गौतम ! वैक्रिय और तेजस पुद्गलों की अपेक्षा से उनमें पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श कहे हैं। कार्मण पुद्गलों की अपेक्षा से पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और चार स्पर्श कहे हैं / जीव की अपेक्षा से वे वर्ण रहित यावत् स्पर्शरहित कहे हैं / 20. एवं जाव थणियकुमारा। [20] इसी प्रकार (असुरकुमारों से ले कर) यावत् स्तनितकुमारों तक कहना चाहिए। 21. पुढविकाइया पं० पुच्छा। गोयमा ! ओरालिय-तेयगाइं पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पत्नत्ता, कम्मगं पडुच्च जहा नेरइयाण, जीवं पडुच्च तहेव / [21 प्र.) भगवन् ! पृथ्वीकायिक जीव कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं ? [21 उ.] गौतम ! औदारिक और तैजस पुद्गलों की अपेक्षा पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श वाले कहे हैं। कार्मण को अपेक्षा और जीव की अपेक्षा, पूर्ववत् (नैरयिकों के कथन के समान) जानना चाहिए / 22. एवं जाव चरिदिया, नवरं बाउकाइया ओरालिय-वेउन्वियतेयगाई पडुच्च पंचवण्णा जाव प्रट्ठफासा पन्नत्ता / सेसं जहा नेरइयाणं / [22] इसी प्रकार (अप्काय, से लेकर) यावत् चतुरिन्द्रिय तक जानना चाहिए। परन्तु इतनी विशेषता है कि वायुकायिक, औदारिक, बैक्रिय और तेजस, पुद्गलों की अपेक्षा पांच वर्ण, पांच रस, दो गन्ध और आठ स्पर्श वाले कहे हैं / शेष (के विषय में) नैरयिकों के समान जानना चाहिए / 23. पंचेंदियतिरिक्खजोणिया जहा वाउकाइया / [23] पंचेन्द्रिय तिर्यञ्चयोनिक जीवों का कथन भी वायुकायिकों के समान जानना चाहिए। 24. मणुस्सा णं. पुच्छा। ओरालिय-बेउन्विय-आहारग-तेयगाई पडुच्च पंचवण्णा जाव अट्ठफासा पन्नत्ता / कम्मगं जीवं च पडुच्च जहा नेरइयाणं / [24 प्र. भगवन् ! मनुष्य कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाले हैं ? 1. भगवती. (हिन्दीविवेचन) भा. 4, पृ. 2054 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org