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________________ 182] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र गर्भ में प्रागमन के समय जीव में वर्णादिप्ररूपणा 36. जोवे णं भंते ! गम्भं वक्कममाणे कतिवंगणं कतिगंधं कतिरसं कतिफासं परिणाम परिणमति ? गोयमा ! पंचवर्ण दुगंधं पंचरसं अट्ठफासं परिणामं परिणमति / [36 प्र.] भगवन् ! गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव, कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला होता है ? [36 उ.] गौतम ! (गर्भ में उत्पन्न होता हुआ जीव) पांच वर्ण, दो गन्ध, पांच रस और आठ स्पर्श वाले परिणाम से परिणत होता है / विवेचन–गर्भ में प्रवेश करता हुआ जीव-शरीरयुक्त होता है। इसलिए वह अन्य शरीरवत् पंचवर्णादि वाला होता है। कर्मों से जीव का विविध रूपों में परिणमन 37. कम्मतो णं भंते ! जीवे, नो अकम्मो विभत्तिभावं परिणमइ, कम्मतो णं जए, नो प्रकम्मतो विभत्तिभावं परिणमइ ? हंता, गोयमा ! कम्मतो गं तं चेव जाव परिणमइ, नो अकम्मतो विभत्तिभावं परिणमइ / सेवं भंते ! सेवं भंते! ति० / बारसमे सए : पंचमो उद्देसओ समत्तो / / 12-5 // [37 प्र.] भगवन् ! क्या जीव कमों से ही मनुष्य-तिर्यञ्च आदि विविध रूपों को प्राप्त होता है, कर्मों के विना नहीं ? तथा क्या जगत् कर्मों से विविध रूपों को प्राप्त होता है, विना कर्मों के प्राप्त नहीं होता? [37 उ. ] हाँ, गौतम ! कर्म से जीव और जगत् (जीवों का समूह) विविध रूपों को प्राप्त होता है, किन्तु कर्म के विना ये विविध रूपों को प्राप्त नहीं होते। 'हे भगवन् ! यह इसी प्रकार है, भगवन् ! यह इसी प्रकार है' यों कहकर गौतम स्वामी, यावत् विचरते हैं। विवेचन-कर्म के विना जीव नाना परिणाम वाला नहीं-रक, तिर्यञ्च, मनुष्य और देव भवों में जीव जो विभक्तिभाव (विभाग रूप नानारूप) भाव (परिणाम) को प्राप्त होता है, वह कर्म के विना नहीं हो सकता। कर्मों के उदय से ही जीव विविध रूपों को प्राप्त होता है। सुख-दुःख, सम्पन्नता-विपन्नता, जन्म-मरण, रोग-शोक, संयोग-वियोग आदि परिणामों को जीव स्वकृत कर्मों के उदय से हो भोगता है।' जगत् का अर्थ है जीवसमूह या जंगम 2 ॥बारहवां शतक : पंचम उद्देशक समाप्त // 1. भगवती. अ. वृत्ति, पत्र 575 2. “जगत् —जीवसमूहो, जीवद्रव्यस्यैव वा विशेषो जंग माभिधानो, जगन्ति जंग मान्याहुरिति वचनात् / " -वही, पत्र 575 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
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