________________ [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र को अतिदीर्घकाल तक संसार के अनुभव से प्राप्त होने वाली बुद्धिविशेष पारिणामिकी है / ' अवग्रहादि चारों का स्वरूप-अवग्रह-इन्द्रिय और पदार्थ के योग्यस्थान में रहने पर सामान्य प्रतिभासरूप दर्शन (निराकार ज्ञान) के पश्चात् होने वाले तथा अवान्तर सत्ता सहित वस्तु के सर्वप्रथम ज्ञान को अवग्रह कहते हैं / ईहा-अवग्रह से जाने हुए पदार्थ के विषय में उत्पन्न हुए संशय को दूर करते हुए विशेष की जिज्ञासा को ईहा कहते हैं। प्रवाय-ईहा से जाने हुए पदार्थों में निश्चयात्मक ज्ञान होना अवाय है। धारणा-अवाय से जाने हुए पदार्थों का ज्ञान इतना सुदृढ हो जाए कि कालान्तर में भी उसकी विस्मृति न हो तो उसे धारणा कहते हैं / उत्थानादि पांच का विशेषार्थ उत्थानादि-पाँच वीर्यान्तराय कर्म के क्षय या क्षयोपशम से उत्पन्न होने वाले जीव के परिणामविशेषों को उत्थानादि कहते हैं। ये सभी जीव के पराक्रमविशेष हैं / उत्थान-प्रारम्भिक पराक्रम विशेष / कर्म-भ्रमणादि क्रिया, जीव का पराक्रमविशेष / बल-- शारीरिक पराक्रम या सामर्थ्य / वीर्य-शक्ति, जीवप्रभाव अर्थात्--यात्मिक शक्ति / पुरुषकार पराक्रम--प्रबल पुरुषार्थ, स्वाभिमानपूर्वक किया हुआ पराक्रम / अवकाशान्तर, तनुवात-घनवात-घनोदधि, पृथ्वी आदि के विषय में वर्णादिप्ररूपरणा 12. सत्तमे णं भंते ! ओवासंतरे कतिवण्णे ? एवं चेव जाव अफासे पन्नत्ते। [12 प्र.] भगवन् ! सप्तम अवकाशान्तर कितने वर्ण, गन्ध, रस और स्पर्श वाला है ? [12 उ.] गौतम ! वह वर्ण यावत् स्पर्श से रहित है / 13. सत्तमे णं भंते ! तणवाए कतिवणे ? जहा पाणातिवाए (सु. 2) नवरं अट्ठफासे पन्नत्ते / [13 प्र.] भगवन् ! सप्तम तनुवात कितने वर्णादि वाला है ? [13 उ.] गौतम ! इसका कथन (सू. 2 में उक्त) प्राणातिपात के समान करना चाहिए। विशेष यह है कि यह पाठ स्पर्श वाला है / 14. एवं जहा सत्तमे तणुवाए तहा सत्तमे घणवाए घणोदधी, पुढवी। [14 ] जिस प्रकार सप्तम तनुवात के विषय में कहा है, उसी प्रकार सप्तम घनवात, घनोदधि एवं सप्तम पृथ्वी के विषय में कहना चाहिए / 15. छ8 ओवासंतरे अवणे / [15] छठा अवकाशान्तर वर्णादि रहित है। 1. भगवती. अ. बृत्ति, पत्र 574 2. प्रमाणनयतत्त्वालोक / 3. (क) पाइअसहमहष्णवो (ख) भगवती प्रमेयचन्द्रिका टीका भा-१० पृ. 176 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org