________________ बारहवां शतक : उद्देशक 4} [163 _ [33 उ.] गौतम ! जिस प्रकार (प्रत्येक) नैयिक जोव को वक्तव्यता कही है, उसी प्रकार (प्रत्येक) असुरकुमार के विषय में यावत् वैमानिक भव-पर्यन्त कहना चाहिए / 34. एवं जाव थणियकुमारस्स / एवं पुढविकाइयस्स वि / एवं जाव वेमाणियस्स / सन्वेसि एक्को गमो। [34] इसी प्रकार (प्रत्येक असुरकुमार के समान) यावत्-(नागकुमार से लेकर प्रत्येक) स्तनितकुमार तक कहना चाहिए। इसी प्रकार प्रत्येक पृथ्वीकाय के विषय में भी (पृथ्वीकाय से लेकर) यावत्-(प्रत्येक) वैमानिक पर्यन्त सबका एक (समान) पालापक (गम) कहना चाहिए। 35. [1] एगमेगस्स गं भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया वेउब्वियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? अणंता। [35-1 प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के नैरयिक भव में अतीतकालीन वैक्रिय पुद्गल-परिवर्त्त कितने हुए हैं ? [35-1 उ.] गौतम ! (ऐसे वैक्रिय पुद्गल-परिवर्त) अनन्त हुए हैं / [2] केवतिया पुरेक्खडा ? एक्कुत्तरिया जाव अणंता वा। [35-2 प्र.] भगवन् ! भविष्यकालीन (वैक्रिय-पुद्गल-परिवर्त) कितने होंगे? [35-2 उ.] गौतम ! (किसी के होंगे और किसी के नहीं होंगे। जिनके होंगे) (उनके) एक से लेकर (1, 2, 3) उत्तरोत्तर उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा यावत् अनन्त होंगे। 36. एवं जाव थणियकुमारत्ते / [36] इसी प्रकार यावत् स्तनितकुमार भव तक कहना चाहिए / 37. [1] पुढविकाइयत्त पुच्छा / नत्थि एक्को वि। 637-1 प्र.] (भगवन् ! प्रत्येक नै रयिक जीव के) पृथ्वीकायिक भव में (अतीत में वैक्रिय पुद्गल-परिवर्त) कितने हुए ? [37-1 उ.] (गौतम !) एक भी नहीं हुप्रा / [1] केवतिया पुरेक्खडा ? नत्थि एक्को वि। [37-2 प्र.] (भगवन् ! ) भविष्यकाल में (ये) कितने होंगे ? [37-2 उ.] गौतम ! एक भी नहीं होगा। 38. एवं जत्थ वेउब्वियसरीरं तत्थ एगुत्तरिमो, जत्थ नत्थि तत्थ जहा पुढविकाइयत्ते तहा भाणियब्वं जाव बेमाणियस्स वेमाणियत्ते। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org