________________ 162] [व्याख्याप्रज्ञप्तिसूत्र 29. [1] एगमेगस्स गं भंते ! नेरइयस्स असुरकुमारत्त केवतिया औरालियपोग्गलपरियट्टा० ? एवं चेव / [26-1 प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के, असुरकुमाररूप में अतीत औदारिक पुद्गलपरिवर्त कितने हुए हैं ? [26-1 उ.] गौतम ! इसी प्रकार (पूर्ववक्तव्यतानुसार) जानना चाहिए। [1] एवं जाव थणियकुमारत्त / [26-2] इसी प्रकार (नागकुमार से लेकर) यावत्-स्तनितकुमार (तक कहना चाहिए / ) 30. [1] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स पुढविकाइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा अतीया ? प्रणंता। [30-1 प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नैरयिक जीव के, पृथ्वीकाय के रूप में अतीत में औदारिक पुद्गल-परिवर्त कितने हुए ? [30-1 उ.] गौतम वे अनन्त हुए हैं / [2] केवतिया पुरेक्खडा ? कस्सइ अस्थि, कस्सइ नस्थि / जस्सऽस्थि जहन्नणं एक्को वा दो वा तिनि वा, उक्कोसेणं संखेज्जा वा असंखेज्जा वा अणंता वा। [30-2 प्र.] भगवन् ! भविष्य में कितने होंगे ? [30-2 उ.] किसी के होंगे, और किसी के नहीं होंगे। जिसके होंगे, उसके जघन्य एक दो या तीन और उत्कृष्ट संख्यात, असंख्यात अथवा अनन्त होंगे। 31. एवं जाव मणुस्सले। [31] इसी प्रकार (अकायत्व से लेकर) यावत् मनुष्य भव तक कहना चाहिए। 32. वाणमंतर-जोतिसिय-वेमाणियत्त जहा असुरकुमारते / [32] जिस प्रकार असुरकुमारपन के विषय में कहा, उसी प्रकार वाणव्यन्तरपन, ज्योतिष्कपन तथा वैमानिकपन के विषय में कहना चाहिए। 33. एगमेगस्स णं भंते ! असुरकुमारस्स नेरइयत्ते केवतिया ओरालियपोग्गलपरियट्टा प्रतीया? एवं जहा नेरइयस्स वत्तव्वया भणिया तहा असुरकुमारस्स वि माणितव्या जाव वेमाणियत्ते / [33 प्र.] भगवन् ! प्रत्येक असुरकुमार के नैरयिक भव में अतीत औदारिक पुद्गल-परिवर्त कितने हुए हैं ? Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org