SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 1426
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बारहवां शतक : उद्देशक 4] [161 अतीत पुद्गलपरिवर्त अनन्त कैसे ? प्रत्येक जीव या प्रत्येक नैरयिकादि जीव के अतीतकालसम्बन्धी प्रौदारिक आदि पुद्गलपरिवर्त अनन्त हैं, क्योंकि अतीतकाल अनादि है और जीव भी अनादि है तथा भिन्न-भिन्न पुद्गलों का ग्रहण करने का उनका स्वभाव भी अनादि है।' ____ अनागतपुद्गलपरिवर्त-भविष्यत्कालिक पुद्गलपरिवर्त्त दूरभव्य या अभव्य जीव के तो होते ही रहेंगे, किन्तु जो जीव नरकादिगति से निकल कर मनुष्य भव पा कर सिद्धि प्राप्त कर लेगा, अथवा जो संख्यात या असंख्यात भवों में सिद्धि को प्राप्त करेगा, उसके पुद्गलपरिवर्त नहीं होगा। जिसका संसारपरिभ्रमण अधिक होगा, वह एक या अनेक पुद्गलपरिवर्त करेगा, परन्तु वह एक पुद्गलपरिवर्त भी अनेक काल में पूरा होगा / कठिनशब्दार्थ—एगमेगस्स जीवस्स—प्रत्येक जीव के / पुरेक्खडा-पुरस्कृत-अनागत-भविष्यत्कालीन / एकत्तिया --एक जीवसम्बन्धी या एक वचन सम्बन्धी / पुहुत्तिया बहुवचनसम्बन्धी __ एकत्व और बहुत्वसम्बन्धी दण्डक–एकवचन-सम्बन्धी प्रौदारिकादि सात प्रकार के पुदगलपरिवर्त होने से, सात दण्डक (विकल्प) होते हैं। इन सात दण्डकों को नैयिकादि चौवीस दण्डकों में कहना चाहिए और इसी प्रकार बहुवचन से भी कहना चाहिए / एकवचन और बहुवचन सम्बन्धी दण्डकों में अन्तर यह है कि एकवचनसम्बन्धी दण्डकों में भविष्यत्कालीन पुद्गलपरिवर्त्त किसी जीव के होते हैं और किसी जीव के नहीं होते। बहुवचनसम्बन्धी दण्डकों में तो होते ही हैं, क्योंकि उनमें जीवसामान्य का ग्रहण है।४ एकत्व दृष्टि से चौवीस दण्डकों में चौबीत दण्डकवर्ती जीवत्व के रूप में प्रतीतादि सप्तविध पुदगलपरिवर्त-प्ररूपरणा 28. [1] एगमेगस्स णं भंते ! नेरइयस्स नेरइयत्ते केवतिया पोरालियपोग्गलपरिया प्रतीया? नस्थि एक्को वि। [28-1 प्र.] भगवन् ! प्रत्येक नै रयिक जीव के, नैरयिक अवस्था में अतीत (भूतकालीन) औदारिक पुद्गल परिवर्त कितने हुए हैं ? [28-1 उ.] गौतम ! एक भी नहीं हुआ। [2] केवतिया पुरेक्खडा? नस्थि एक्को वि। [28-2 प्र.] भगवन् ! भविष्यत्कालीन (औदारिक पुद्गल-परिवर्त) कितने होंगे ? [28-2 उ.] गौतम ! एक भी नहीं होगा। 1. भगवती, प्र. वृत्ति, पत्रांक 568 2. वही, पत्र 568 3. वहीं, पत्र 568 4. वही, पत्र 568 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003473
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Stahanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMadhukarmuni
PublisherAgam Prakashan Samiti
Publication Year1982
Total Pages2986
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size69 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy